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________________ आत्मा ही है शरण 14 व्यापारी के सन्दर्भ को तीन बार दुहरा कर इस बात को और अधिक स्पष्ट कर दिया गया है; क्योंकि क्षत्रिय, ब्राह्मण और शूद्र को झूठ बोलने के कम अवसर होते हैं, व्यापारियों को अधिक । सत्य के आधार पर व्यापार करना ही व्यापारी की सत्यनारायण की पूजा है । सत्यनारायण की पूजा चारों वर्गों के व्यक्तियों ने की। इसका भी यह रहस्य है कि सत्य एक ऐसा धर्म है, जिसकी उपासना चारों वर्गों को समान रूप से करनी चाहिए । भाई, हम सत्यधर्म को भूल गए हैं और सत्यनारायण की पूजा पीढ़ियों से करते आ रहे हैं । वस्तुतः सत्य ही नारायण है, वही उपास्य है, आराध्य है । आपके हाथ में जो घड़ी है, उस पर वाटरप्रूफ लिखा है, पर क्या आपने खरीदते समय इसे पानी में डालकर देखा था? क्या खरीद लेने के बाद भी आज तक पानी में डालकर देखा है ? ___ नहीं, तो क्यों नहीं देखा ? क्योंकि आपको विश्वास है कि जो लिखा है, वह पूर्णतः सत्य है । जिसने जीवन में सत्य को अपनाया, जो व्यवहार में प्रामाणिक रहा, वह लाखों घड़ियाँ मनमानी कीमत पर बेच लेता है और जो सत्य पर कायम नहीं रहता, उसे शुद्ध घी बेचने में भी पसीना छूटता है । ___ सत्य की उपासना ही समृद्धि का कारण है-यही सन्देश है सत्यनारायण की कथा का, जिसे हमने भुला दिया है। सत्य (प्रमाणिकता) को जीवन में अपनाकर अनार्य देश समृद्ध होते जा रहे हैं और हम झांझ-मंजीरे से सत्यनारायण की पूजन करने में ही मग्न हैं ।। सत्यधर्म को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देने वाली यह कथा सचमुच ही महान है । __ भाई! भारतीय संस्कृति की प्रत्येक क्रिया के पीछे सुविचारित वैज्ञानिक कारण हैं। तुलसी के पौधे को आंगन में रखने और उसकी पानी से पूजन
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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