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आत्मा ही है शरण
इस अवसर पर राजकोट वाले डॉ. चन्दूभाई कामदार एवं उनके भाई डॉ. ईश्वरभाई कामदार भी उपस्थित थे । हमारे प्रवचन के बाद पहले दिन डॉ. चन्दूभाई का प्रवचन भी रखा गया था, जिसमें उन्होंने कहा कि हमें कल्पना भी न थी कि यहाँ भी इसप्रकार की गहरी तत्त्वचर्चा सुननेवाले लोग हैं। डॉ. भारिल्ल प्रतिवर्ष यहाँ आते हैं और वीतराग - विज्ञान में सब समाचार लिखते भी हैं, पर आज साक्षात् देखकर हमारे विश्वास को और अधिक बल मिला है ।
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हमने भी डॉ. चन्दूभाई के प्रवचनों का अधिक से अधिक लाभ लेने का अनुरोध किया, क्योंकि वे वहाँ दो माह रहनेवाले थे । उन दोनों ही भाइयों के सुपुत्र वहाँ रहते हैं । अमेरिका से वापिस होते समय ६ जुलाई, १९९० को एक व्याख्यान डॉ. ईश्वरभाई के सुपुत्र के घर भी रखा गया था, जिसमें लगभग २०-२५ डॉक्टर एवं और भी अनेक लोग थे ।
अकेले न्यूयार्क में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण अमेरिका और यूरोप में इस वर्ष हम जहाँ भी गये, सर्वत्र ही पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर में दिसम्बर, १९९० में होनेवाले विश्वस्तरीय विशाल पंचकल्याणक महोत्सव में पधारने का सभी को आमंत्रण दिया ।
५ जून, १९९० को टोरन्टो (कनाडा) पहुँचे । यहाँ जिनमन्दिर में पाँच दिन में पाँच प्रवचन कुन्दकुन्दशतक पर ही हुए । प्रवचन के बाद प्रतिदिन लगभग एक घंटा गहरी तत्त्वचर्चा होती थी । कुन्दकुन्दशतक का पाठ तो प्रतिदिन प्रवचनों के पूर्व होता ही था ।
यहाँ पुराने जैन मंदिर के हॉल को बेच दिया गया है और उसके स्थान पर उससे भी तिगुना बड़ा हॉल खरीद लिया गया है । अतः अब स्थान की कोई कमी नहीं रही है । नये हॉल में ५०० व्यक्ति आसानी से बैठ सकते हैं । यहाँ के प्रवचनों के वीडियो कैसेट भी तैयार किये गये । यहाँ समाज भी बड़ा है और उपस्थिति भी अच्छी रहती थी ।