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आत्मा ही है शरण
आचार्य कुन्दकुन्द जिन - अध्यात्म परम्परा के प्रतिष्ठापक आचार्य हैं । उनके ग्रन्थों में जिन - अध्यात्म का अत्यन्त विशुद्ध प्रतिपादन है । उनकी लौहलेखनी से प्रसूत अन्तस्तत्त्व के तलस्पर्शी प्रतिपादक समयसारादि ग्रन्थराज जिन - अध्यात्म के क्षेत्र में विगत दो हजार वर्षों से प्रकाशस्तम्भ का कार्य कर रहे हैं ।
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प्रातःस्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द के प्रति श्रद्धासुमन समर्पित करने के लिए सम्पूर्ण जैनसमाज द्वारा उनका द्विसहस्राब्दी समारोह विगत वर्ष बड़े ही उत्साहपूर्वक सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया गया । हमने भी इस अवसर पर 'आचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम' नामक ग्रन्थ लिखकर, 'कुन्दकुन्दशतक' व 'शुद्धात्मशतक' का संकलन कर एवं समयसार की गाथाओं का हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद कर उनके प्रति अपने श्रद्धासुमन समर्पित किए ।
आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह के अवसर पर हम जहाँ भी प्रवचनार्थ गए, लगभग सर्वत्र ही उनके ग्रन्थराज समयसारादि पर या फिर कुन्दकुन्दशतक पर ही प्रवचन किए । विदेश यात्रा में भी इस वर्ष जहाँ-जहाँ गये, लगभग सर्वत्र ही समयसार एवं कुन्दकुन्दशतक की गाथाओं को आधार मानकर प्रवचन किए ।
इस वर्ष की यात्रा १ जून, १९९० को न्यूयार्क से आरंभ हुई । २ जून, शनिवार और ४ जून, सोमवार को डॉ. धीरूभाई के घर पर एवं ३ जून, रविवार को जिन मन्दिर में कुन्दकुन्दशतक के पाठ के उपरान्त इसी की दूसरी व तीसरी गाथा पर मार्मिक प्रवचन हुए । प्रवचनों में लगभग १५० लोग उपस्थित रहते थे ।