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________________ 175 धूम क्रमबद्धपर्याय की के इडार शहर में हैं, जिनमें नवलखाजी, ललवानीजी आदि प्रमुख हैं । सभी लोग आये थे । इसप्रकार हम देखते हैं कि इस वर्ष की इस विदेश यात्रा में सर्वत्र क्रमबद्धपर्याय की धूम तो रही ही, साथ ही अन्य भी जो विषय चले, वे सब भी आध्यात्मिक ही थे । प्रसन्नता की बात यह है कि ये सभी विषय श्रोताओं के अनुरोध पर चलाये गये थे; इससे श्रोताओं की रुचि का आभास होता है । __ जो भी हो, पर अब विदेशों की भूमि पर भी जिन-अध्यात्म की जड़ें गहराई से जमती जा रही हैं, जो निकट भविष्य में ही बटवृक्ष का रूप ले सकती हैं । अखण्ड स्वाध्याय हमें आध्यात्मिक ग्रंथों के स्वाध्याय की वैसी रुचि भी कहाँ है, जैसी कि | विषय-कषाय और उसके पोषक साहित्य पढ़ने की है। ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने किसी आध्यात्मिक, सैद्धान्तिक या दार्शनिक ग्रन्थ का स्वाध्याय आद्योपान्त किया हो। साधारण लोग तो बंधकर स्वाध्याय करते ही नहीं, पर ऐसे विद्वान भी बहुत कम मिलेंगे, जो किसी भी महान ग्रन्थ का जमकर अखण्डरूप से स्वाध्याय करते हों । आदि से अन्त तक अखण्डरूप से हम किसी ग्रन्थ को पढ़ भी नहीं सकते, तो फिर उसकी गहराई में पहुँच पाना कैसे संभव है ? जब हमारी इतनी भी रुचि नहीं कि उसे अखण्डरूप से पढ़ भी सकें तो उसमें प्रतिपादित अखण्ड वस्तु का अखण्ड स्वरूप हमारे ज्ञान और प्रतीति में कैसे आवे? विषय-कषाय के पोषक उपन्यासादि को हमने कभी अधूरा नहीं छोड़ा होगा, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। उसके पीछे भोजन को भी भूल जाते हैं। क्या आध्यात्मिक साहित्य के अध्ययन में भी कभी भोजन को भूले हैं? यदि नहीं, तो निश्चित समझिये हमारी रुचि अध्यात्म में उतनी नहीं, जितनी विषय-कषाय में है । - धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ - १११)
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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