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आत्मा ही है शरण
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यहाँ से ९ जून, १९९० को लासएंजिल्स पहुँचे, जहाँ १० जून, रविवार को जैन सेन्टर के विशाल हॉल में कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें ५५० भाई-बहिन उपस्थित थे । हॉल तो खचाखच भरा ही था, ऊपर के हॉल में टी. वी. लगे थे, वहाँ भी अनेक लोग, विशेषकर बच्चों वाली महिलाएँ बैठी थीं । ___ यह कार्यक्रम जैन सोशल ग्रुप की ओर से रखा गया था । इस कार्यक्रम का सम्पूर्ण भार डॉ. उदानी ने उठाया था । उन्होंने बताया कि मैं आपके व्याख्यान वर्षों से सुनता आ रहा हूँ । अतः मैं चाहता हूँ कि आपके प्रवचन अधिक से अधिक लोग सुनें - इसी भावना से भोजनादि की व्यवस्था भी की है, जिससे किसी को घर जाकर भोजन बनाने की आकुलता न रहे । ___ कुन्दकुन्दशतक के पाठ के उपरान्त उसी की दूसरी-तीसरी गाथा पर हुए प्रवचनों ने इतना अधिक प्रभाव छोड़ा कि दूसरे दिन अवकाश का दिन न होने पर भी २०० से अधिक लोग प्रवचन सुनने आये । __इसके अतिरिक्त रविवार को दोपहर सुबोध सेठ के घर एवं सोमवार को दोपहर सुधीर सेठ के घर पर प्रवचन व तत्त्वचर्चा के कार्यक्रम रखे गये, जो बहुत ही उपयोगी रहे; क्योंकि यहाँ गहरी तत्त्वचर्चा हुई ।।
१२ जून, १९९० को फिनिक्स पहुँचे । प्रथम दिन का व्याख्यान हॉल में एवं दूसरे व तीसरे दिन के व्याख्यान डॉ. दिलीप वोवरा के घर पर रखे गये। विषय कुन्दकुन्दशतक की वे ही गाथाएँ थीं । इनके अतिरिक्त दोपहर में भी एक दिन डॉ. वोवरा एवं एक दिन डॉ. किरीटभाई गोशालिया के घर तत्त्वचर्चा रखी गई, जो अत्यन्त उपयोगी रही ।।
फिनिक्स से चलकर १६ जून, १९९० को वाशिंगटन डी. सी. पहुँचे, जहाँ प्रतिवर्ष की भाँति इसवर्ष भी शिविर आयोजित था । इस वर्ष का शिविर जैन मन्दिर में रखा गया था । यहाँ इस वर्ष ही जिन-मदिर की स्थापना हुई है । मन्दिर के परिसर में चार एकड़ जमीन है एवं मन्दिर में अत्यन्त मनोज्ञ तीन प्रतिमाएँ हैं, जिनमें एक दिगम्बर प्रतिमा और दो