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________________ आत्मा ही है शरण 12 जैनतत्त्वज्ञान का गहराई से प्रचार-प्रसार न होगा, तबतक असली जैनधर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार संभव नहीं है । ___धर्मप्रेमी विदेशी बन्धुओं के अनुरोध पर वहाँ से आते ही मैंने जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों का सामान्यज्ञान एवं सदाचार की प्रेरणा देनेवाली बालकोपयोगी धार्मिक पाठ्यपुस्तकों का अनुवाद कार्य तेजी से आरम्भ कराया, उन्हें छपाने की त्वरित व्यवस्था की और छह माह के भीतर ही बालबोध पाठमाला भाग १-२-३ तथा वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग १-२-३ इसप्रकार छह पुस्तकें अंग्रेजी में छपकर तैयार हो गई । उक्त छह पुस्तकों के एक हजार सेट लेकर मैं इस वर्ष दुबारा यू. के. और यू. एस. ए. की यात्रा पर निकला । विज्ञान के बढ़ते प्रभाव ने धार्मिक आस्थाओं पर गहरी चोट की है और होटल संस्कृति के विकास ने शाकाहार पर कुठाराघात किया है । जीवनोपयोगी सन्तुलित आहार के बहाने खान-पान की शुद्धता समाप्त होती जा रही है। आज का आदमी प्रत्येक बात को विज्ञान की कसौटी पर कसकर ही स्वीकार करना चाहता है और आहार की चर्चा स्वास्थ्य के आधार पर करता है। जबतक हम अपनी धार्मिक आस्थाओं को विज्ञान की कसौटी पर कसकर प्रस्तुत नहीं करेंगे और शाकाहार को स्वास्थ्यकर सिद्ध नहीं कर सकेंगे, तबतक सफलता प्राप्त होना संभव नहीं है। यह समस्या मात्र हमारी ही नहीं है, अपितु भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शनों के सभी प्रचारकों की है। हमारे इस प्रवास में जैन सेन्टरों में तो हमारे व्याख्यान हुए ही, अनेक हिन्दू मन्दिरों में भी हमारे प्रवचन हुए । ह्यूस्टन के हिन्दू मन्दिर में जब हम व्याख्यान देने गए तो वहाँ सत्यनारायण की कथा चल रही थी।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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