SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाएं विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की चर्चा जब भी चलती है, तब उसका आशय जैनेतर बन्धुओं में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार से ही समझा जाता है, इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता कि आज विश्व का एक भी देश ऐसा नहीं है, जहाँ प्रवासी जैन न रहते हों। विश्व के कोने-कोने में भारतीय जैनों का आवास है। अकेले अमेरिका (यू. एस. ए.) में पचास हजार जैन रहते हैं। कनाडा में भी प्रचुर मात्रा में जैनों का निवास है। ब्रिटेन, बेल्जियम आदि यूरोपीय देशों एवं केनिया आदि अफ्रीकी देशों की भी यही हालत है। ____ अमेरिकन, अफ्रीकी एवं यूरोपीय देशों में बसे जैनों से अनेक बार हुए निकट सम्पर्क के आधार पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि आज जैनेतरों को जैन बनाने की अपेक्षा जैनों को ही जैन बनाये रखने की आवश्यकता अधिक है। __ मैं यह नहीं कहता कि जैनेतरों में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार नहीं होना चाहिए। होना चाहिए, अवश्य होना चाहिए; पर पड़ोसियों को अमृत बांटने में हम इतने व्यस्त भी न हो जावें कि अपना घर ही न संभाल पावें। यदि हमारा घर ही विकृत हो गया तो फिर पड़ोसियों की संभाल भी संभव न रहेगी; क्योंकि पड़ोसी कोरे उपदेशों से प्रभावित होने वाले नहीं हैं, वे हमारा आचरण देखकर ही प्रभावित होते हैं। जब हमारा घर ही शाकाहारी न रहेगा तो फिर हम किस मुँह से दूसरों को शाकाहर का उपदेश देंगे? जब हमारी आगामी पीढ़ी के मुख में ही णमोकार मंत्र न होगा तो किस आधार पर दूसरों के मुख में णमोकार मंत्र डालेंगे? एक बात और भी तो है कि मात्र शाकाहार और णमोकार मंत्र ही तो जैनधर्म नहीं है, इनके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है। जबतक
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy