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आत्मा ही है शरण
के कार्यक्रम रखे गये। इन तत्त्वचर्चा के क्रार्यक्रमों में भी पहले तो एक घण्टे गम्भीर विषय पर प्रवचन जैसा ही होता था, बाद में लगभग एक घण्टे चर्चा चलती थी ।
न्यूयार्क में हम श्री सुशीलकुमारजी गोदीका के घर ठहरे थे। जिस पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने आज देश-विदेश में सभी जगह जैन तत्त्वज्ञान को घर-घर पहुँचाने का बीड़ा उठा रखा है, उस ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष सेठ श्री पूरणचन्दजी गोदीका के वे सुपुत्र हैं एवं पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के ट्रस्टी भी हैं ।
इस सम्पूर्ण यात्रा में जिन पन्द्रह स्थानों पर हमारे प्रवचनादि कार्यक्रम हुए, उनकी उपस्थिति का अनुपात यदि १२५ से १३० के बीच भी मानें तो दो हजार से अधिक लोगों ने हमें सुना है; क्योंकि ये स्थान एक-दूसरे से इतने दूर हैं कि एक स्थान के श्रोता का दूसरे स्थान पर पहुँचना सम्भव नहीं है। यदि एक व्यक्ति ने अपने दो-दो इष्ट मित्रों से भी इसकी चर्चा की हो, उन्हें टेप उपलब्ध कराये हों तो छह हजार लोगों तक वीतरागी तत्त्व पहुँचा है। ये छह हजार भारत के साठ हजार से कम नहीं; क्योंकि ये सभी शिक्षित और प्रतिभाशाली लोग थे, भारत के श्रोताओं में तो पढ़- अपढ़ सभी रहते हैं ।
मैं अपनी इस यात्रा को यू. के. और यू. एस. ए. में गहरे जैन तत्त्वज्ञान के भवन का शिलान्यास समझता हूँ। हमारी कल्पना का भव्य भवन वहाँ खड़ा हो पाता है या नहीं - यह तो भविष्य ही बतायेगा, उसके बारे में कुछ भी कहना न तो संभव ही है और न उचित ही; किन्तु इस कल्पना के साकार होने की पावन भावना के साथ ही इस यात्रा - विवरण से विराम लेता हूँ ।