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आत्मा ही है शरण
दूसरे दिन रविवार को जैन सेन्टर के हॉल में प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये थे, जो बहुत अच्छे रहे ।
हम दूसरे दिन न्यूयार्क से चलकर १७ जुलाई, १९८९ ई. को लन्दन पहुँचे ।
प्रथम दिन १८ जुलाई, १९८९ ई. नवनाथ भवन के हॉल में सम्यग्दर्शन विषय पर प्रवचन रखा गया था । दूसरे दिन एक स्कूल के हॉल में प्रवचन रखा गया था । प्रवचनोपरान्त दोनों दिन चर्चा भी रखी गई थी । तीसरे दिन २० जुलाई, १९८९ ई. को मानचेस्टर का कार्यक्रम था । वहाँ प्रवचन गाँधी हॉल में रखा गया था । उपस्थिति भी बहुत अच्छी थी और प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम भी वहुत अच्छे रहे ।
२१ जुलाई, १९८९ ई. को लिस्टर में कार्यक्रम था । यहाँ जैन मन्दिर के हॉल में प्रवचन रखे गये थे । यहाँ गतवर्ष ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ, जिसकी चर्चा विगतवर्ष हम कर ही चुके हैं ।
यहाँ एक प्रवचन २१ जुलाई की रात को एवं एक प्रवचन २२ जुलाई के प्रातः रखा गया था । दोनों प्रवचन एवं प्रवचनों के उपरान्त हुई चर्चा बहुत अच्छी हुई । यहाँ आठ-दस अजैन भाई भी प्रवचन में आये थे, जिनमें दो-तीन मुसलमान भी थे । वे इतने अधिक प्रभावित थे कि बार-बार कह रहे थे कि हम तो आपके दर्शन करने आये हैं । हमने उन्हें समझाया कि दर्शन तो भगवान के होते हैं । हम तो साधारण विद्वान हैं ।
उन्होंने हमें बताया कि हमारे पास आपके लन्दन में हुए प्रवचनों के पाँच केसेट हैं, जिन्हें हम लगभग प्रतिदिन अपनी मण्डली में सामूहिक रूप से सुनते हैं; उनसे हम इतने प्रभावित हुए हैं कि हमें आपके दर्शनों की तीव्र इच्छा थी और हम आपके दर्शनों के लिए भारत आकर जयपुर आने का कार्यक्रम बना रहे थे । तभी हमें एक भाई ने बताया कि आप तो यहीं आ रहे हैं, तभी से हम आपके आने की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे, पर वह दिन आज आया है ।