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धूम क्रमबद्धपर्याय की
उन्होंने बताया कि ये पाँचों केसेट हमारे एक मित्र के पास थे, जिन्हें वह प्रतिदिन सुना करता था । हम एक दिन उसके घर गये तो वह वही केसेट सुन रहा था । जवतक प्रवचन समाप्त नहीं हो गया, तबतक उसने हमसे कोई बात नहीं की । प्रवचन समाप्त होने पर जब हमने पूछा तो उसने हमें आपके बारे में बताया । हमने उससे केसेट माँगे तो उसने कहा
कापी करलो, मूल केसेट तो मैं किसी को नहीं दूंगा । हमने उससे कापी की । इसप्रकार कई कापियाँ होकर हमारी पूरी मण्डली में फैल गईं, जिसमें हिन्दू-मुसलमान सभी हैं ।
उनका इतना वात्सल्य देखकर हम गद्गद् हो गये और हमें लगा कि सचमुच सभी भगवान आत्मा ही हैं, कोई हिन्दू-मुसलमान नहीं, कोई जैन नहीं । जहाँ भारत में बसे अनेक जैन भी इस तत्त्वज्ञान का विरोध करते हैं, वहाँ परदेश में बसे हिन्दू-मुसलमान भी कितने प्रेम से सुनते हैं, समझते हैं, शक्ति के अनुसार धारण भी करते हैं । वीतरागी तत्त्वज्ञान को संप्रदाय की सीमा में बांधना उचित नहीं है, संभव भी नहीं है ।
२२ जुलाई, १९८९, शनिवार की शाम को लन्दन में कार्यक्रम रखा गया था । यह कार्यक्रम भगवानजीभाई कचराभाई के वेयरहाउस के हॉल में रखा गया था । रात्रि ८.३० से १० बजे तक बहुत सुन्दर कार्यक्रम चला । इसके पूर्व सायं ५ से ६.३० बजे तक वीरेन्द्र जैन के घर पर कार्यक्रम रखा गया था यह भी अच्छा रहा ।
यह तो सर्वविदित ही है कि तीन वर्ष पूर्व भगवानजीभाई ने शास्त्रों की कीमत कम करने के लिए एक लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान की थी, जो अब पूर्ण प्रयोग में आ चुकी है । अब उन्होंने इसी प्रकार उपयोग करने के लिए एक लाख रुपये की स्वीकृति और प्रदान की है । इसप्रकार अब उनकी ओर से निरन्तर शास्त्रों की कीमत कम होती रहेगी ।
९० वर्ष की उम्र होने पर भी वे आध्यात्मिक जागृति में अत्यन्त सक्रिय हैं, व्यापारिक कार्यों से पूर्णतः निवृत्त होने पर भी धार्मिक गतिविधियों में