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आत्मा ही है शरण
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संख्या रहती थी, शनिवार और रविवार को संख्या बढ़ गई थी, क्योकि उन दिनों अजैन भाई भी बहुत आ गये थे । ___ भारतीय दूतावास के असिस्टेन्ट राजदूत ने सपरिवार प्रत्येक प्रवचन का पूरा-पूरा लाभ लिया । वे प्रतिदिन प्रवचन सुनने के बाद प्रसन्नता व्यक्त करते थे, चर्चा भी करते थे । राजदूत भी एक दिन सपरिवार पधारे थे । प्रवचन के बाद वे हमसे बहुत देर तक चर्चा करते रहे । दोनों ही राजदूत पंजाबी परिवारों से थे, पर अध्यात्म के रसिक थे ।
प्रवचनों की विषयवस्तु के संबंध में चर्चा की ही जा चुकी है । प्रत्येक दिन का कार्यक्रम शुद्धात्मशतक के पाठ से आरंभ होता था । यद्यपि सभी के हाथों में पुस्तकें होती थीं, तथापि पाठ कैसेट से चलता था और सभी लोग साथ में वोलते थे ।
शुद्धात्मशतक, कुन्दकुन्दशतक, समयसार पद्यानुवाद, वारह भावना एवं जिनेन्द्रवंदना के जो भी कैसेट हमारे पास थे, सभी ने उनकी कॉपियाँ कर ली हैं, जिनका उपयोग वे सब निरन्तर करेंगे । ___ सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात तो यह है कि यहाँ के जैन परिवारों में धार्मिक संस्कार शेष हैं, अन्यत्र जैसा काल का दुष्प्रभाव यहाँ देखने में नहीं आया। युवकों में भी धार्मिक संस्कार हैं, तत्त्वज्ञान समझने की जिज्ञासा है। सदाचार तो पूरी तरह कायम है ही, सामाजिक एकता भी अच्छी है ।
दो परिवार मारवाड़ी भी हैं, एक तो हैं नेमीचन्दजी खजांची और दूसरे शिखरचन्दजी हैं, जो चौधरी साहब के नाम से जाने जाते हैं । ___ यह तो सर्वविदित ही है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान अणुबम का शिकार बना था, हिरोशिमा और नागासागी बम वर्षा से बर्बाद हो गये थे। आधुनिक शस्त्र कितने विनाशकारी हैं, इसका अत्यल्प प्रयोग भी कितना खतरनाक हो सकता है ? - यह अपनी आँख से देखने के लिए हम एक दिन हिरोशिमा भी गये थे ।