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धूम क्रमबद्धपर्याय की
क्रमबद्धपर्याय का भक्त हो गया है, उसपर इसका कुछ अधिक ही असर हो गया है ।
मैंने कहा – “चिन्ता न करें, समय पाकर सबकुछ सन्तुलित हो जावेगा।"
इसपर वे बोले - "चिन्ता की क्या बात है ? जो कुछ हुआ है, अच्छा ही हुआ है, अच्छे के लिए ही हुआ है ।"
जयन्तीभाई हांग-कांग वाले मधुकरभाई के साले हैं । हीरे के बहुत बड़े व्यापारी हैं और धार्मिकवृत्ति के सज्जन पुरुष हैं । उन्हीं के पार्टनर महेशभाई दोशी हैं, जो बसंतभाई दोशी, बम्बईवालों के चचेरे भाई हैं । जापान में एकमात्र दिगम्बर जैन वे ही हैं, शेष सब मूर्तिपूजक श्वेताम्बरभाई ही हैं । महेशभाई अध्यात्मरुचि सम्पन्न मुमुक्षु भाई हैं । ___ यहाँ दो-तीन वर्ष पूर्व ही एक जैन मन्दिर का निर्माण हुआ है । यह मन्दिर पूर्णतः भारतीय स्थापत्य कला के अनुसार ही बना है । एकदम भारतीय जैन मन्दिर जैसा ही लगता है । इसके आसपास ही लगभग ३० जैन परिवार रहते हैं, जिनकी सदस्यों की कुल संख्या १८५ है । इन लोगों के अधिकतर मोतियों का व्यापार है, क्योकि जापान का कोवे नगर मोतियों के व्यापार की मंडी है ।
मन्दिर के पास में ही एक इण्डियन क्लब है, जिसकी व्यवस्था भी लगभग इन लोगों के ही हाथ में है । इसमें एक विशाल हाल है, जिसमें हजारों लोग एकसाथ बैठ सकते हैं । हमारे प्रवचनों का कार्यक्रम भी इसी इण्डियन क्लब के हाल में रखा गया था । कुछ कार्यक्रम मन्दिरजी के हाल में भी रखे गए थे । ___ यहाँ ६ दिन में ११ प्रवचन हुये । प्रातः ९.३० से ११.३० तक
और सायं ८.३० से १०.३० तक कार्यक्रम चलते थे । दोपहर में डेढ़ घंटे चर्चा जयन्तीभाई के घर ही चलती थी । प्रवचनों में १२५ के लगभग