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धूम क्रमबद्धपर्याय की
"क्रमबद्धपर्याय ओरों के लिए एक सिद्धान्त हो सकती है, एकान्त हो सकती है, अनेकान्त हो सकती है, मजाक हो सकती है, राजनीति हो सकती है, पुरुषार्थप्रेरक या पुरुषार्थनाशक हो सकती है, अधिक क्या कहें - किसी को कालकूट जहर भी हो सकती है । किसी के लिए कुछ भी हो; पर मेरे लिए वह जीवन है, अमृत है; क्योंकि मेरा वास्तविक जीवन अमृतमय जीवन, आध्यात्मिक जीवन - इसके ज्ञान, इसकी पकड़ और इसकी आस्था से ही आरंभ हुआ है ।
क्रमबद्धपर्याय की समझ मेरे जीवन में मात्र मोड़ लाने वाली ही नहीं, अपितु उसे आमूलचूल बदल देने वाली संजीवनी है । मेरी दृढ़ आस्था है कि जिसकी भी समझ में इसका सही स्वरूप आयेगा, यह तथ्य सही रूप में उजागर होगा उसकी जीवन भी आनन्दमय, अमृतमय हुए बिना नहीं रहेगा ।
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यही कारण है कि मैं इसे घर-घर तक ही नहीं, अपितु जन-जन तक पहुँचा देना चाहता हूँ; इसे जन-जन की वस्तु बना देना चाहता हूँ ।
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१० वर्ष पूर्व जब मैंने यह लिखा था, तब मुझे यह कल्पना भी नहीं थी कि 'क्रमबद्धपर्याय' का यह अलौकिक सिद्धान्त एक दशक में ही विश्वव्यापी हो जायगा । चाहे पक्ष में हो या विपक्ष में पर आज सम्पूर्ण विश्व के जैन जगत का यह सर्वाधिक बहुचर्चित विषय है ।
देश में या विदेश में इन दिनों मैं जहाँ भी जाता हूँ, सर्वत्र ही न चाहते हुए भी एक-दो प्रवचन 'क्रमबद्धपर्याय' पर अवश्य करने पड़ते हैं । अबतक १. आत्मधर्म (हिन्दी) अक्टूबर, १९७९ ई. का सम्पादकीय पृष्ठ ३