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आत्मा ही है मारण
सकते हैं ? जितना अन्तर दिगम्बर श्वेताम्बर मान्यताओं में है, उतना अन्तर तो हम और आप में नहीं है न ?
एकबार ऊपरी मन से एकसाथ उठने-बैठने लगें तो फिर सहज वात्सल्य भी जागृत हो जायेगा । अनावश्यक दूरी व्यर्थ ही आशंकाएँ उत्पन्न करती है । दूरी समाप्त करने का एकमात्र उपाय सहज भाव से नजदीक आना ही है ।
इस पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप जिसप्रकार का समायोजन कर रहे हैं और दिगम्बर प्रतिमाओं की जिसप्रकार प्रतिष्ठा हो रही है; उस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, मुझे कोई विरोध भी नहीं है; पर यह अवश्य पूछना चाहता हूँ कि भारत में हम जो प्रतिष्ठाएँ कराते हैं; वे क्या आपकी दृष्टि में ऐसी भी नहीं हैं, जो आप उनका इतना विरोध करते हैं ? आपसे यही अनुरोध है कि दिगम्बर धर्म के प्रचार-प्रसार एवं दिगम्बर समाज की सुख-शान्ति व एकता के लिए इन सब बातों पर एकबार गंभीरता से विचार करें ।
हमारी यह सम्पूर्ण वार्ता अत्यन्त स्नेहपूर्ण वातावरण में हुई । सेठीजी ने भी यही कहा कि हम भी यही चाहते हैं, पर हमारी कुछ आशंकाएँ हैं, जिनका निवारण हम आपसे करना चाहते हैं ।
मैंने कहा
- "अवश्य पूछिए, क्या पूछना चाहते हैं ?”
उन्होंने कहा तो नहीं चलाना चाहते ? "
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मैंने कहा "एकदम नहीं, हम कोई नया पंथ नहीं चलाना चाहते । आप ही हमें 'कानजी पंथी' कहते हैं, हमने स्वयं तो कभी अपने को 'कानजी पंथी' कहा ही नहीं ।"
वे बोले
"क्या यह सत्य है ?"
"एक तो आप यह बताइये कि आप कोई नया पंथ