________________
129
"कैसे?"
"सात दिन तक प्रेमपूर्वक साथ-साथ रहने का नाटक करके "
" प्रस्ताव तो बुरा नहीं है, पर
"पर क्या ? क्या हम पिताजी के लिए इतना भी बलिदान नहीं कर
सकते ?.....
12
जीवन-मरण और सुख-दुख
"
"क्यों नहीं ?"
इसप्रकार सुनिश्चित करके सुनिश्चित दिन पर दोनों ही एकसाथ मिलकर पिताजी को लेने स्टेशन पहुँचे, प्रेम से उन्हें लाए, सात दिन तक इसप्रकार रहे कि मानो उनमें प्रगाढ़ स्नेह हो, वे आदर्श दम्पति हों ।
सात दिन बाद जब वे उन्हें स्टेशन पर बिदा करने गये, तब उन्हें बिदा करके अपने-अपने घर जाने लगे तो पति ने पत्नी से कहा
-
"सुनो, जरा विचार तो करो कि जब हम दूसरों के सुख के लिए एकसाथ प्रेमपूर्वक रहने का इतना अच्छा नाटक लगातार सात दिन तक कर सकते हैं तो अपने सुख के लिए यह नाटक जीवन भर भी क्यों नहीं कर सकते हैं ?"
पत्नी बोली "क्यों नहीं ? अवश्य कर सकते हैं ।"
इसप्रकार वे दोनों पति-पत्नी प्रेमपूर्वक रहने लगे । कुछ दिन तो प्रेम का नाटक रहा, पर कुछ दिन बाद उनमें सहज प्रेमभाव भी जागृत हो
गया।
इसीप्रकार जब हम सम्पूर्ण जैन समाज की एकता के लिए श्वेताम्बर भाइयों के साथ प्रेमपूर्वक उठ बैठ सकते हैं, मिलजुल कर काम कर सकते हैं, सबप्रकार से समायोजन कर सकते हैं, तब फिर दिगम्बर समाज की एकता के लिए क्यों नहीं प्रेमपूर्वक उठ बैठ सकते हैं, क्यों नहीं मिलजुल कर काम कर सकते हैं ? सभी प्रकार का समायोजन भी क्यों नहीं कर