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जीवन-मरण और सुख-दुख
__ मैंने कहा - "इसमें क्या शक ?"
वे फिर बोले - "आप अभी तो कह रहे हैं, पर फिर बदल न जाइयेगा।"
मैंने कहा - "क्या बात करते हैं ? हम उनमें से नहीं हैं, जो कहकर बदल जाते हैं, अभी तक आपका और हमारा व्यवहार नहीं हुआ है, अतः आप इसप्रकार की बातें कर रहे हैं ।" __ वे बोले - "हमें विश्वास नहीं होता । इसलिए मैं यह बात कर रहा हूँ । आप कहें तो मैं यह बात छपवा दूँ ।" ___ मैंने कहा - "अवश्य छपवा दीजिए । आप क्या मैं स्वयं ही इस बात को लिलूँगा । फिर तो आपको कोई शंका नहीं रहेगी ।"
उन्होंने मेरी इस बात पर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की । फिर कहने लगे
"अपन श्रवणबेलगोला में सहस्राब्दी समारोह पर मिले थे, बहुत चर्चा भी की थी, पर उसके बाद मिलना नहीं हुआ । अभी मवाना शिविर के पहले दिल्ली में भी आपने चर्चा नहीं की ।" ___ मैने कहा – “रूपचंदजी कटारिया ने बात की थी, पर उससमय वातावरण कितना विषाक्त था । क्या ऐसे विषाक्त वातावरण में भी कोई चर्चा सफल हो सकती है ? चर्चा के लिए सौम्य वातावारण चाहिए, सहज वातावरण चाहिए ।
चर्चा मात्र चर्चा के लिए ही तो नहीं करनी है । कुछ रास्ता निकले, तभी चर्चा सफल होती है । इसके लिए पूर्व तैयारी अत्यन्त आवश्यक है।
आप या हम तभी तो कोई बात स्वीकार कर सकते हैं, जब उस बात को अपने-अपने पक्ष की जनता को भी स्वीकृत करा सके । यदि अपने पक्ष की जनता को स्वीकार न करा सके तो हमारे और आपके स्वीकार करने मात्र से क्या होगा ?