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जीवन-मरण और सुख-दुख
यदि वह गाय जंगल में रहती और घास पत्ती पर ही निर्भर रहती तो उसके एकाध किलो ही दूध होता; पर जब हम उसे खली आदि पौष्टिक पदार्थ खिलाते हैं तो वही गाय चार-पांच किलो दूध देती है । बछड़े को तो उसका एकाध किलो दूध मिल ही जाता है; अतिरिक्त दूध ही सज्जन लोग प्राप्त करते हैं ।
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इसप्रकार यह तो एकप्रकार से आदान-प्रदान है, इसमें अन्याय भी कहाँ है ? यदि इसप्रकार अन्याय की कल्पना करेंगे तो फिर इसप्रकार का आदान-प्रदान तो मनुष्य जाति में भी परस्पर होता ही है, हम दूसरे से उचित पारिश्रमिक देकर सेवायें प्राप्त करते ही हैं । किसी बेकार व्यक्ति को उचित पारिश्रमिक देकर रोजगार देने को तो लोक में परोपकार कहा जाता है, शोषण नहीं, अन्याय भी नहीं । इसीप्रकार गाय और बछड़े की सर्वप्रकार की उचित सेवा के बदले में दूध प्राप्त करने को भी परस्पर उपकार के अर्थ में देखा जाना चाहिए, अन्याय या शोषण के अर्थ में नहीं । भारतीय संस्कृति में गाय को तो माँ जैसा सन्मान प्राप्त है ।
अतः अंडे की तुलना दूध से करना असंगत तो है ही, अज्ञान की सूचक भी है । इसपर भी यदि कोई कहे कि जिसप्रकार दूध न निकले तो गाय को तकलीफ हो सकती है या दूध के बदले में हम गाय को चारा- पानी देते हैं; उसीप्रकार मुर्गी का अंडा देना भी उसे सुखकर ही होता है तथा अंडा लेने के बदले हम उसका पालन-पोषण भी करते ही हैं । अतः दूध व अंडा समान ही हुए ।
यह कहना भी उचित नहीं है; क्योंकि जिसप्रकार अंडा मुर्गी की संतान है, उसप्रकार दूध गाय की संतान नहीं है । अतः सच तो यह है कि अंडा दूध के समान नहीं, गाय के बछड़े के समान है । अतः अंडा खाना बछड़े को खाने जैसा ही है ।
इसप्रकार कुछ लोग कहते हैं कि शाकाहारी अंडे से बच्चे का जन्म नहीं हो सकता; अतः वह दूध के समान अजीव ही है; पर यह बात एकदम