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आत्मा ही है शरण
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गलत है; क्योंकि वह मुर्गी के प्रजनन अंगों का उत्पादन है, अतः अशुचि तो है ही, साथ ही उत्पन्न होने के बाद भी बढ़ता है, सड़ता नहीं है; अतः सजीव भी है; भले ही पूर्णता को प्राप्त होने की क्षमता उसमें न हो, पर उसे अजीव किसी भी स्थिति में नहीं माना जा सकता है । _दूसरी बात यह भी तो है कि उसका नाम अंडा है, वह अंडाकार है, अंडे के ही रूप-रंग का है; उसके खाने में अंडे का ही संकल्प है । यदि किसी के कहने से उसे अजीव भी मान लिया जाय, तब भी उसके सेवन में अंडे का ही संकल्प होने से मांसाहार का पूरा-पूरा दोष है ।
हमारे यहाँ तो आटे के मुर्गे के बध का फल भी नरक-निगोद बताया है, फिर इस साक्षात् अंडे का सेवन कैसे संभव है ?
अंडा खाने में जो संकोच अभी हमारी वृत्ति में है, एक बार अजीव शाकाहारी अंडे के नाम पर उस संकोच के समाप्त हो जाने पर फिर कौन ध्यान रखता है कि जिस अंडे का सेवन हम कर रहे हैं वह सजीव है या अजीव ?
अतः शाकाहारी अंडे के दुष्प्रचार से शाकाहारियों को बचाना हम सबका प्राथमिक कर्तव्य है । कहीं ऐसा न हो कि एक ओर हम छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ते-झगड़ते रहें और दूसरी ओर हमारी आगामी पीढ़ी पूर्णतः संस्कारहीन, तत्वज्ञानहीन और सदाचारहीन हो जाय ? यदि ऐसा हुआ तो इतिहास हमें कभी क्षमा नहीं करेगा ।
अतः इस अवसर पर कॉन्फ्रेन्स के कर्णधारों एवं आप सबसे मैं यह मार्मिक अपील करना चाहता हूँ कि समय रहते हम इस ओर ध्यान दें, सभीप्रकार के आपसी मतभेदों को भुलाकर आगामी पीढ़ी को संस्कारित करने का दृढ़ संकल्प करें, उस दिशा में सक्रिय हों; अन्यथा हमारी इस उपेक्षा का परिणाम आगामी एक नहीं अनेक पीढ़ियों को भुगतना होगा ।