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आत्मा ही है मारण
इसपर कुछ लोग कहते हैं कि दूध भी तो गाय-बकरी के शरीर का ही अंश है, पर उनका यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि दूध और अंडे में जमीन-आसमान का अन्तर है । दूध के निकलने से गाय-बकरी के जीवन को कोई हानि नहीं पहुँचती, जबकि अंडे के सेवन से अंडे में विद्यमान जीव का सर्वनाश ही हो जाता है । यदि दूध देनेवाली गाय-बकरी का दूध समय पर न निकले तो उसे तकलीफ होती है। दूध पिलानेवाली माताओं को यदि कारणवश अपने बच्चों को दूध पिलाने का अवसर प्राप्त न हो तो उन्हें बुखार तक आ जाता है, उन्हें अपने हाथ से दूध निकालना पड़ता है ।
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इसपर यदि कोई कहे कि भले ही दूध निकालने से गाय को तकलीफ न होती हो, आराम ही क्यों न मिलता हो; पर उसके दूध पर उसके बछड़े का अधिकार है, आप उसे कैसे ले सकते हैं ? क्या यह गाय और बछड़े के साथ अन्याय नहीं है ?
हाँ इसे एक दृष्टि से अन्याय तो कह सकते हैं, पर इसमें वैसी हिंसा तो कदापि नहीं, जैसी कि मांसाहार में होती है । गहराई से विचार करें तो इसे अन्याय कहना भी उचित प्रतीत नहीं होता; क्योंकि गाय का दूध लेने के बदले में गाय और बछड़े के भोजन-पानी, रहने एवं अन्य सभी प्रकार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है । यदि गाय से दूध प्राप्त न किया जाय तो उसके भोजन - पानी की व्यवस्था भी कौन करेगा ?
गाय की बात तो ठीक, पर बछड़े के साथ तो अन्याय है ही; क्योंकि उसका अधिकार तो छीना ही गया है ।
ऐसी बात भी नहीं है; एक तो उसके बदले में उसे अन्य उपयुक्त खाद्य सामग्री खिलाई जाती है, दूसरे गाय को पौष्टिक आहार देकर अतिरिक्त दुग्ध उत्पादन किया जाता है । उस अतिरिक्त दूध को सज्जन लोग प्राप्त करते हैं, बछड़े का हिस्सा तो बछड़े को प्राप्त होता ही है ।