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जीवन-मरण और सुख-दुख
ओर दीवालें ही दीवालें हैं और ये दीवालें निरन्तर ऊँची होती जा रही हैं। दीवाल को अंग्रेजी में वाल कहते हैं । आज हम इन वालों - दीवालों के बीच विभक्त हो गये हैं । कोई खण्डेलवाल है, कोई अग्रवाल है, कोई ओसवाल, पर जैन कोई भी दिखाई नहीं देता । यदि हम इन वालों - दीवालों को गिरा दें और सभी जैनत्व के महासागर में समाहित हो जावें तो हम वीतराग वाणी को जन-जन तक पहुँचा सकते हैं, और यह वीतराग वाणी जन-जन तक पहुँचकर सम्पूर्ण जगत को सुख-शान्ति का मार्ग दिखा सकती है । अतः अब समय आ गया है कि हम साम्प्रदायिक वाड़ों में कैद न रहें, जाति, प्रान्त और भाषा की सीमाओं में सीमित न रहें । यदि हम अहिंसारूपी वीतरागी तत्वज्ञान को असीम जगत तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमें इन छुद्र सीमाओं को भेदकर इनसे बाहर आकर महावीर वाणी के सार को जन-जन तक पहुँचाने के महान कार्य में जी-जान से जुट जाना चाहिये । यही सन्मार्ग है और इसी में हम सबका हित निहित है ।
शाकाहार के सन्दर्भ में जो वात मैंने कही, उसका सार इसप्रकार है:
"आजकल अंडों को शाकाहारी बताकर लोगों को भ्रष्ट किया जा रहा है । इस प्रचार के शिकार कुछ जैन युवक भी हो रहे हैं । अतः हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस सन्दर्भ में समाज को जागृत करें |
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शाकाहार तो वनस्पति से उत्पन्न खाद्य को ही कहा जाता है, पर अंडे न तो अनाज के समान किसी खेत में ही पैदा होते हैं और न सागसब्जी और फलों के समान किसी बेल या वृक्ष पर ही फलते हैं; वे तो स्पष्टतः ही सैनीपंचेन्द्रिय मुर्गियों की संतान हैं । यह तो हम सब जानते ही हैं कि द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों के शरीर का अंश ही मांस है; अतः अंडे से उत्पन्न खाद्य स्पष्ट रूप से मांसाहार ही है ।