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________________ विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता __उनके सामने एक अहम सवाल भाषा का अवश्य है। विदेशों में जन्मी पीढ़ी अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य भाषा समझती ही नहीं है। जैन तत्त्वज्ञान को उन तक पहुँचाने के लिए जैनदर्शन के मर्मज्ञ ऐसे तार्किक विद्वान कहाँ उपलब्ध होंगे, जो उन्हें जैनदर्शन के मर्म को अंग्रेजी भाषा में सतर्क समझा सकें ? किसी भाषा में धाराप्रवाह बोलने का अधिकार निरन्तर बोलने के अभ्यास से होता है। भारत में ऐसा वातावरण कहाँ है, जहाँ जैनदर्शन को अंग्रेजी में निरन्तर सुनने के लिए श्रोता उपलब्ध हों? लौकिक बातें अंग्रेजी में कुछ लोग भले ही कर लें, पर आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान का प्रतिपादन असंभव नहीं तो दुःसाध्य अवश्य है। । दूसरी ओर विदेशों में जन्मी भावी पीढ़ी का इतनी अच्छी हिन्दी-गुजराती सीखना भी संभव नहीं लगता कि गूढ़ रहस्य के प्रतिपादक वक्ताओं के भावों को पूर्णतः ग्रहण कर सकें। इस सन्दर्भ में भी मैंने मध्यम मार्ग सुझाया : "अंग्रेजी के शिक्षक और साहित्य तैयार करने के साथ-साथ बालकों को भी अपनी मातृभाषा का ज्ञान कराया जाना चाहिए। जो लोग जैन तत्त्वज्ञान और उसके प्रचार-प्रसार में रुचि रखते हों, उन लोगों को भारत आकर जैनदर्शन का थोड़ा-बहुत अध्ययन करना चाहिए। उन्हें हम सब प्रकार की सुविधायें जुटाकर छोड़े ही दिनों मे इस योग्य बना देंगे कि वे लोग अपने नगर के बालकों को अंग्रेजी या उनकी मातृभाषा में जैन तत्त्वज्ञान का सामान्य ज्ञान करा सकेंगे।" हमारे इस प्रायोगिक स्तर पर खरे उतरनेवाले सुझाव को भी पसन्द किया गया; पर सब-कुछ भविष्य की सक्रियता पर ही निर्भर करेगा। यदि दो-चार कार्यकर्ता भी इस दिशा में कमर कस के सक्रिय हो गए तो कुछ भी असंभव नहीं है। हमें विश्वास है कि ऐसे लोग अवश्य निकलेंगे, क्योंकि अभी पृथ्वी निर्वीजक नहीं हुई है।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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