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आत्मा ही है शरण
पृथक्-पृथक् धार्मिक अध्ययन, प्रवचन, तत्त्वचर्चा, गोष्ठी आदि के कार्यक्रम होने चाहिये।
इसीप्रकार वर्ष में एक-दो बार सभी नगरों के सामूहिक सम्मेलन भी होने चाहिए, जिसमें सभी लोगों का परस्पर मिलन हो सके। इस सम्मेलन का आधार भी धार्मिक और तात्त्विक ही होना चाहिए ।
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दूसरे; समय-समय पर भारत से योग्य विद्वानों को बुलाकर उनके कार्यक्रमों के माध्यम से भी जागृति उत्पन्न करना चाहिए। आपके बालकों को लगभग तीन माह का ग्रीष्मावकाश प्राप्त होता है। उसका पूरा-पूरा सदुपयोग भी जैनसंस्कृति के परिचय में होना चाहिए। जैनसंस्कृति के परिचय के लिए आवश्यक है कि उन्हें अपने सांस्कृतिक केन्द्रों का भ्रमण कराया जाय तथा लगभग एक माह भारतीय पद्धति से जैनदर्शन के अध्ययन में बिताना चाहिए, जिससे उन्हें जैन तत्त्वज्ञान के सामान्य ज्ञान के साथ-साथ भारतीय पद्धति से जीवन जीने का प्रायोगिक ज्ञान भी हो सके।”
उक्त सुझाव देने के साथ-साथ मैंने उन्हें इस कार्य में सहयोग देने का भी आश्वासन दिया। मैंने कहा
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“यदि आप और आपके बालक जैन तत्त्वज्ञान की जानकारी के लिए जयपुर पधारें तो हमारी संस्था आपके ठहरने, भोजन एवं अध्ययन की यथासंभव अच्छी से अच्छी सुविधा निःशुल्क प्रदान करेगी। यदि आप हमें पहिले से सूचित करके पधारेंगे तो हम आपको सभी तरह से अधिक संतुष्टि प्रदान कर सकेंगे। वैसे ठहरने और भोजन की सामान्य सुविधाएँ तो हमारे यहाँ सतत उपलब्ध रहती ही हैं।"
हमारे इस सक्रिय सहयोग का पूरा-पूरा लाभ उठाने की हार्दिक भावनाएँ वहाँ की समाज ने व्यक्त की हैं, पर यह तो भविष्य बतायेगा कि इसमें वे लोग कितने सक्रिय हो पाते हैं? पर हमारा विश्वास है कि कुछ न कुछ लोग जयपुर अवश्य पधारेंगे।