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________________ आत्मा ही है शरण हमारी यह यात्रा लन्दन से आरम्भ हुई थी। सर्वप्रथम हम २६-६-१९८४ को लन्दन पहुंचे। हमारे साथ कुल अठारह यात्री थे, जिनमें हिन्दी-गुजराती सभी थे। श्रीमन्त सेठ ऋषभकुमारजी खुरई और सवाई सिंघई धन्यकुमारजी कटनी जैसे लोग भी थे। लन्दन में हमारे सहयात्रियों को थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई, पर आगे सब-कुछ व्यवस्थित हो गया। लन्दन में पांच प्रवचन और लगभग दस घन्टे तत्त्वचर्चा हुई। ध्यान रहे सर्वत्र ही एक घन्टे के प्रवचन के उपरान्त लगभग एक घंटा प्रश्नोत्तर होते ही थे। प्रवचनों में २०० से ४00 तक उपस्थिति रहती थी और चर्चा में ५० से १00 के बीच। यहाँ दो प्रवचन श्रीमती गुणमाला भारिल्ल के भी हुए। ___ लन्दन में केनिया से आये बहुत से मुमुक्ष भाई रहते हैं। उनमें जागृति अच्छी है। हमारी प्रेरणा से सप्ताह में एक दिन सामूहिक स्वाध्याय का संकल्प लिया गया और दस-बीस व्यक्तियों के ग्रुप द्वारा एक माह के लिए जयपुर आकर जैनदर्शन के गहरे अध्ययन की भावना भी व्यक्त की गई। __लन्दन के बाद हम २ जुलाई को न्यूयार्क पहुँचे। न्यूयार्क का कार्यक्रम अन्त में रखा गया था; अतः वहाँ से नाग्राफाल देखते हुए वाशिंगटन चले गए, जहाँ हमें रजनीभाई गोशालिया के यहाँ ठहरने का अवसर मिला। रजनीभाई गहरी पकड़वाले आध्यात्मिक रुचि-सम्पन्न व्यक्ति हैं। वाशिंगटन में हॉल में एक प्रवचन तथा प्रश्नोत्तर एवं रजनीभाई गोशालिया के घर दो दिन तक प्रतिदिन दो-दो घन्टे अनेक बन्धुओं की उपस्थिति में गहरी तात्त्विक चर्चाएं हुई। वहाँ से हम लासएंजिल्स पहुंचे, जहाँ रमेशभाई दोशी के यहाँ ठहरना हुआ। यहाँ भी दो प्रवचन एवं लगभग तीन घन्टे तत्त्वचर्चा हुई। एक प्रवचन श्रीमती गुणमाला भारिल्ल का भी हुआ। वहाँ से सानहुजो गये, जहाँ हिम्मतभाई डगली के यहाँ ठहरना हुआ। वहाँ एक प्रवचन और लगभग एक घन्टे तत्त्वचर्चा
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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