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आत्मा ही है शरण
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___ अरे भाई ! यदि अभी शादी करने का विचार नहीं था तो फिर लड़की देखने ही क्यों गया था ? पर बात यह है कि भारतीयों का मना करने का तरीका ही यह है और यह ठीक ही है; क्योंकि किसी लड़की को अयोग्य बताकर इन्कार करना अच्छी बात तो नहीं है; अतः समझदार लोग इसीप्रकार का उत्तर देते हैं ।
उनका इसप्रकार का उत्तर पाकर आपके चित्त में एक आशंका खड़ी हो जाती है कि लड़के ने लड़की को तो एकदम पसंद कर लिया था, पर वाद में पड़ोस में गया था; हो सकता है कि पड़ोसी ने उसे भड़काया हो, इसीलिए इन्कारी का उत्तर आया है । इसप्रकार की कल्पना करके आप व्यर्थ ही पड़ोसी से द्वेष करने लगते हैं । ___ मैं यह नहीं कहता कि पड़ोसी ने उसे वरगलाया नहीं होगा; क्योंकि भारत में ऐसे पड़ोसियों की भी कमी नहीं है, गली-गली में ऐसे पड़ोसी मिल जायेंगे, पर यह अवश्य कहना चाहता हूँ कि पड़ोसियों के वरगलाने से कुछ होता नहीं है । यदि पड़ोसियों के वरगलाने से संबंध रुक जाते होते तो आज एक भी कन्या की शादी संभव न होती; क्योंकि बरगलाने वाले पड़ोसियों की कमी नहीं है, पर इसकारण आजतक एक भी कन्या कुंवारी नहीं रही । असली बात यह है कि जिसे स्वयं ही संबंध ठीक नहीं लगता, वे ही बरगलाने वालों के चक्कर में आते हैं, जिसे सोलह आने जंच जाता है, उन पर वरगलाने वालों का कोई असर नहीं होता; क्योंकि सब जीवों के सभी लौकिक कार्य अपने क्रमबद्वपर्यायानुसार एवं अपने कर्मोदयानुसार ही होते हैं । ___ यह सत्य हम सबके ख्याल में अच्छी तरह आ जावे तो व्यर्थ में ही होने वाले अनन्त राग-द्वेषों से बचा जा सकता है । दूसरों के सोचने, कहने,
और करने से हमारा कुछ भी भला-बुरा नहीं होता, हमारा भला-बुरा पूर्णतः हमारे कर्मानुसार ही होता है ।