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जीवन-मरण
और सुख-दुख
अतीन्द्रिय आनन्द और निराकुल शान्ति प्राप्त करने का एकमात्र उपाय निज भगवान आत्मा की साधना और आराधना है । अनन्त आनन्द के कंद और ज्ञान के घनपिण्ड निज भगवान आत्मा को जानना, पहिचानना, उसी में जमना-रमना ही निज भगवान आत्मा की साधना और आराधना है; इसे ही शास्त्रीय भाषा में निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र कहते हैं ।
यही कारण है कि जिन-अध्यात्म का एकमात्र मूल प्रतिपाद्य वह परमपारिणामिक भावरूप त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा ही है, जिसके जानने का नाम सम्यग्ज्ञान, जिसमें अपनापन स्थापित करने का नाम सम्यग्दर्शन और जिसका ध्यान करने अर्थात् जिसमें जमने-रमने का नाम सम्यक्चारित्र है । इसी परमपारिणामिक भावरूप भगवान आत्मा को 'ज्ञायकभाव' नाम से भी जाना जाता है । ___ अमेरिका और यूरोप में धर्म-प्रचारार्थ की गई अपनी इस पाँचवीं यात्रा में जब हम शिकागो पहुँचे, तब पहले ही प्रवचन में इसी परमपारिणामिकभाव- ज्ञायकभाव सम्बन्धी प्रश्न सुनने को मिले तो चित्त प्रसन्न हो उठा और लगा कि अब यहाँ भी अध्यात्म की गहरी जिज्ञासा जागृत हो रही है और यहाँ के जिज्ञासु भी जिन-अध्यात्म की गहराई तक पहुँच रहे हैं ।
डिट्रोयट में भी परमपारिणामिकभाव के सन्दर्भ में पाँच भावों सम्बन्धी जिज्ञासा से भी यही प्रतीत हुआ । वाशिंगटन शिविर में छहढाला चलाने की मांग तो छह माह पूर्व ही आ गई थी, परिणामस्वरूप हम ५० छहढाला साथ भी ले गये थे ।
छह माह पा । वाशिंगटन
साथ