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________________ असन्तोष की जड़ ] "हे भगवान् ! मैं आ आज तुम्हारी साक्षी मैं अपनी बात पूरी कर भी न पाई थी कि पीछे से आवाज आयी ..... 84 SUTA भाम ८३ भगवान के नाम पर मरनेवाली ! जरा ठहरो । भगवान क्या कहता है तुमने कभी यह भी सोचा है ?" 11 - मैं मुड़कर देखा और आश्चर्यचकित रह गई । वह परछाई कह रही थी - " घबराओं नहीं, मैं तुम्हें कुए में गिरने से बचाने नहीं आया, किन्तु भवकूप में गिरने से बचाने के लिए आया हूँ । मेरे लिए तो तुम कुए में गिर ही चुकी हो, पर मैं तुम्हारे इस अनमोल मानव-जीवन को व्यर्थ ही नहीं जाने देना चाहता । इस तरह मरकर तुम्हें शान्ति प्राप्त न होगी, अपितु नरकादि के अनन्त दुःख भोगने होंगे। सुखशान्ति प्राप्त करने का वास्तविक उपाय यह नहीं है, यह तो पलायन है। महासती सीता को आदर्श माननेवाली भारतीय ललनाओं को यह याद रखना चाहिए कि अपने ही लोगों के असद्व्यवहार से विरक्त सीता ने आत्महत्या का मार्ग न चुनकर आत्मसाधना का रास्ता अपनाया था । "
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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