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________________ ७ जरा-सा अविवेक ( १ ) - सेठ धनपतराय एवं पण्डित सुमतिचन्द की मित्रता लोगों की ईर्ष्या का विषय थी । न सेठ धनपतराय को पण्डित सुमतिचन्द के बिना चैन पड़ती और न पण्डित सुमतिचन्द को ही सेठ धनपतराय के बिना अच्छा लगता। अब तो खैर दोनों रिटायर्ड ही हो गये समझिये; परन्तु जब उनके काम करने के दिन थे, तब भी वे दोनों महीने में पन्द्रह दिन एक साथ भोजन करते थे । सेठजी के यहाँ पण्डितजी ने भोजन किया या पण्डितजी के यहाँ सेठजी ने इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता था; पर दोनों का एक साथ भोजन होना आवश्यक अवश्य था और यह सब सहज ही होता था, इसमें आमंत्रण- निमंत्रण देनेलेने का कोई चक्कर नहीं था। हाँ, सेठानी और पण्डितानी को इस बात की शिकायत जीवन भर बनी रही कि घर भोजन नहीं करना था तो कम से कम खबर तो कर देते, हम भूखे तो न बैठे रहते। पर उनकी भी मजबूरी थी; पहले से निश्चित हो, तभी तो कुछ सूचना दी जावे । कुछ यदि सेठजी अपने घर न हों तो समझिये कि निश्चितरूप से पण्डितजी के घर होंगे। इसमें किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं है, यह बात पक्की ही समझिये । यही बात पण्डितजी के बारे में भी सोलह आने सत्य थी कि यदि वे अपने घर न मिलें तो सेठजी के ही घर मिलेंगे । उनको खोजने के लिए अन्यत्र भटकने की आवश्यकता आज तक तो किसी को पड़ी नहीं थी । उन दोनों की मित्रता उनके परिवारों के लिए चाहे जैसी रही हो, पर समाज के लिए तो वरदान थी । पण्डितजी एवं सेठजी की प्रतिष्ठा मिलकर समाज का
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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