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________________ उच्छिष्ट भोज़ी ] ३३ भरत समझाते हुए बोले - "माँ, भावुकता से तथ्य नहीं बदला करते । मेरे प्रति स्नेह से अभिभूत आपका हृदय यह सत्य स्वीकार नहीं कर पा रहा है । सत्यासत्य का निर्णय हृदय से नहीं, बुद्धि से विवेक से होता है।" - " 'भरत की माँ भावुक हो सकती है, पर राजमाता नहीं । उच्छिष्ट की 1 परिभाषा राजमाता अच्छी तरह जानती है । " " क्या वह परिभाषा भरत भी जान सकता है ?" " 'क्यों नहीं ? उच्छिष्ट भोग भीख में प्राप्त होते हैं, भुजबल से नहीं । भरत को यह साम्राज्य भीख में नहीं मिला, उसने इसे भुजबल से प्राप्त किया है; अतः इसे उच्छिष्ट नहीं कहा जा सकता । " "उच्छिष्ट भोजन के लिए भी तो प्राणी लड़ते देखे जाते हैं । अन्ततः जो जीतता है, उच्छिष्ट भोजन भी उसे भुजबल से ही प्राप्त होता है ।" . 44 'नहीं, नहीं; यह तुम्हारे पुण्य का प्रताप है, पुण्य का फल है।" " उच्छिष्ट भोजन भी पुण्य के बिना नहीं मिलता। वह भी सबको सहज कहाँ उपलब्ध रहता है ?" "तुम तो बहस करते हो?" T "माँ ! बात बहस की नहीं, सत्य समझने की है । फिर यह मेरे भुजबल का फल भी तो नहीं, भुजबल से तो इसे भुजबली ने अर्जित किया था। आपके
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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