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उच्छिष्ट भोज़ी ]
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भरत समझाते हुए बोले - "माँ, भावुकता से तथ्य नहीं बदला करते । मेरे प्रति स्नेह से अभिभूत आपका हृदय यह सत्य स्वीकार नहीं कर पा रहा है । सत्यासत्य का निर्णय हृदय से नहीं, बुद्धि से विवेक से होता है।"
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"
'भरत की माँ भावुक हो सकती है, पर राजमाता नहीं । उच्छिष्ट की
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परिभाषा राजमाता अच्छी तरह जानती है । "
" क्या वह परिभाषा भरत भी जान सकता है ?"
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'क्यों नहीं ? उच्छिष्ट भोग भीख में प्राप्त होते हैं, भुजबल से नहीं । भरत को यह साम्राज्य भीख में नहीं मिला, उसने इसे भुजबल से प्राप्त किया है; अतः इसे उच्छिष्ट नहीं कहा जा सकता । "
"उच्छिष्ट भोजन के लिए भी तो प्राणी लड़ते देखे जाते हैं । अन्ततः जो जीतता है, उच्छिष्ट भोजन भी उसे भुजबल से ही प्राप्त होता है ।" .
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'नहीं, नहीं; यह तुम्हारे पुण्य का प्रताप है, पुण्य का फल है।" " उच्छिष्ट भोजन भी पुण्य के बिना नहीं मिलता। वह भी सबको सहज कहाँ उपलब्ध रहता है ?"
"तुम तो बहस करते हो?"
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"माँ ! बात बहस की नहीं, सत्य समझने की है । फिर यह मेरे भुजबल का फल भी तो नहीं, भुजबल से तो इसे भुजबली ने अर्जित किया था। आपके