SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ [ आप कुछ भी कहो * जैनपथ प्रदर्शक (पाक्षिक ), जयपुर; मार्च (प्रथम ) १९८४ कहानियों के रूप में अध्यात्म का ऐसा सशक्त चित्रण, जैनदर्शन के मूलभूत सिद्धान्तों की इतनी सरल एवं सरस अभिव्यक्ति, जैन तत्त्वज्ञान का ऐसा अपूर्व दिशाबोध अब तक उपलब्ध नहीं था। निश्चय ही इस क्षेत्र में यह अनुपम एवं अभूतपूर्व प्रयोग है। मेरा विश्वास है कि इस माध्यम से अध्यात्म आसानी से जनसाधारण तक पहुँच सकेगा। विचारप्रधान निबन्धलेखन की तरह कथाशिल्प में भी डॉ. भारिल्ल सिद्धहस्त हैं। उनकी यह विशेषता है कि आगमिक मर्यादाओं का पूरा ध्यान रखते हुए वे अपनी बात इस सहजता से प्रस्तुत करते हैं कि पाठक के गले सहज ही उतरती चली जाती है । प्रसन्नता की बात यह है कि उनकी कलम अध्यात्म एवं तत्वज्ञान के क्षेत्र में ही गतिमान रही है। - रतनचंद भारिल्ल * जैनमित्र (साप्ताहिक), सूरत; ५ अप्रैल, १९८४ प्रस्तुत कृति में कुछ धार्मिक, कुछ सामाजिक और कुछ पारिवारिक कहानियाँ हैं । सभी कहानियों में आध्यात्मिक सुरभि मिलती ही है। उत्तम विचारों के धनी डॉ. भारिल्ल कलम के भी धनी हैं। * समन्वयवाणी (पाक्षिक), जयपुर; अप्रैल (द्वितीय), १९८४ सभी कहानियाँ उत्कृष्ट हैं । भारिल्लजी एक सिद्धहस्त कथाकार हैं तथा निश्चित ही उनका सभी विधाओं पर समान अधिकार है - यह इस कृति ने सिद्ध कर दिया है । बीच-बीच में समागत सूक्तियों ने कृति को और भी अधिक प्रभावी बना दिया है। पुस्तक की छपाई एवं गेटअप सुन्दर है। - अखिल बंसल * वीरवाणी (पाक्षिक), जयपुर; ३ अप्रैल, १९८१, वर्ष ३६, अंक १३ सरल, सुबोध भाषा में जनमानस को छूनेवाली इस मौलिक कृति में डॉ. भारिल्ल की दस कहानियाँ संग्रहीत हैं। प्रत्येक कहानी पढ़ने की उत्सुकता को बढ़ाती है, किताब छोड़ने को जी नहीं चाहता। पौराणिक कथानकों पर आधारित कहानियों में मौलिकता है, अध्यात्म का पुट है।
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy