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अभिमत ]
बना लिया है। प्रथमानुयोग के आधार पर निर्मित इस कृति के निर्माण में उन्होंने जो परिश्रम किया है; वह स्तुत्य है, अभिनन्दनीय है।
इन कथाओं को पढ़कर विशेषकर 'परिवर्तन' कहानी को पढ़कर जो व्यक्ति अपने भीतर परिवर्तन लाने का उद्यम करेगा; वह निहाल हो जावेगा - ऐसा मेरा विश्वास है। * श्री अक्षयकुमारजी जैन; भूतपूर्व संपादक, नवभारत टाइम्स, दिल्ली
'आप कुछ भी कहो' पुस्तक पढ़कर अत्यन्त आनन्द हुआ। आधुनिक परिवेश में प्राचीन वाङ्मय को इसप्रकार उतारा गया है कि चमत्कार ही हो गया है। मेरी बधाई स्वीकार कीजिए। * श्री चण्डीप्रसादजी शर्मा; प्राचार्य, महाराजा संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर
प्रस्तुत पुस्तक में सर्वत्र लघु कथाओं के ब्याज से भारतीय संस्कृति को प्रसारित करने का प्रयास किया गया है। इसप्रकार का सृजन न केवल बौद्धिक विकास में ही सहयोग करता है, अपितु राष्ट्रीय एकता करने में भी महती भूमिका अदा कर सकता है। 'तिरिया-चरित्तर' में पण्डितराज तथा पनिहारिन का संवाद न केवल रोचक अपितु अपरिग्रह तथा सहिष्णुता का भी द्योतक है । इसप्रकार के सृजन को प्रोत्साहन देने के लिए इसप्रकार की पुस्तकें पाठ्यक्रम में रखी जानी चाहिए। ____ अनेक पुस्तकों का निर्माण कर राष्ट्र व समाज की सेवा में रत आप जैसे
जैन दर्शन के ख्याति प्राप्त विद्वान एवं महान व्यक्ति से अनुरोध करता हूँ कि अष्टसहस्री जैसे जटिलतम महान ग्रन्थ को भी अपनी लेखनी से अलंकृत करें, जिससे वह भी युगानुसारी होकर अधिक उपयोगी बन सके। * डॉ. शीतलचन्द्रजी; प्राचार्य, श्री दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर
'आप कुछ भी कहो' कहानी संकलन में डॉ. भारिल्ल ने सरल, सुबोध शैली में आध्यात्मिक तथ्य समाविष्ट कर जैन पौराणिक सन्दर्भ अनावृत किया है। 'परिवर्तन' कहानी पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी के भी जीवन