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________________ [ आप कुछ भी कहो * पं. बाबूभाई मेहता; अध्यक्ष, श्री कुन्दकुन्द कहान दि. जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित कहानियाँ पढ़ीं। प्रथमानुयोग के आधार पर लिखी गई इसप्रकार की धर्मकथाओं का अभाव ही था, जिनमें तत्वज्ञान भरा हो और जो प्रेरक हों। रचनात्मक वैराग्य-प्रेरणा देनेवाली इन सुबोध कथाओं से एक बड़े अभाव की पूर्ति होते देख मुझे अत्यधिक आनन्द हुआ है। मैं अनुभव करता हूँ कि डॉ. भारिल्ल ने प्रथमानुयोग की धर्मकथाओं के कर्ता आचार्यों के हृदय के रहस्य का उद्घाटन करने का महान कार्य किया है, जो स्तुत्य है। इसके लिए उन्हें हार्दिक धन्यवाद देता हुआ आशा करता हूँ कि वीतरागमार्गानुसार लिखी गई इन रचनाओं से सभी समाज पूरा-पूरा लाभ उठायेगी। मेरा विश्वास है कि बाल, युवा एवं वृद्ध सभी को इनके अध्ययन-मनन-चिन्तन से बड़ा भारी क्रान्तिकारी लाभ होगा। * ब्र. श्री यशपालजी जैन; एम.ए., सांगली (महाराष्ट्र) __ मैंने 'आप कुछ भी कहो' में संग्रहीत सभी कहानियों को बारीकी से अनेक बार पढ़ा। इन्हें पढ़कर जो सन्तोष और आनन्द हुआ, उसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता।जैनधर्म के प्राण वस्तु की स्वतन्त्रता एवं अध्यात्म का उर्ध्व रखते हुए चमत्कारिक अन्धश्रद्धा को जड़मूल से उखाड़ फेंकनेवाला आपका यह कथा-साहित्य तत्वरसिकों से अत्यन्त अभिनन्दनीय एवं उदीयमान लेखकों के लिए अनुकरणीय है। आपकी यह कृति जैन कथा-साहित्य में नया इतिहास निर्माण करने वाली विशेष कृति सिद्ध होगी। यह मात्र हिन्दी पाठकों तक ही सीमित रहे – यह मुझे अक्षम्य अपराध प्रतीत होता है । इसका लाभ आत्मधर्म या किसी अन्य पत्रिकाओं के माध्यम से गुजराती, मराठी, कन्नड़ तथा तमिल भाषियों को भी प्राप्त होना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रकार सक्रिय सहयोग देने के लिए मैं सोत्साह तैयार हूँ। * ब्र. हेमचन्दजी जैन 'हेम'; इंजीनियर, एच.ई.एल., भोपाल (म.प्र.) सुगम व सरल भाषा-शैली में तत्वार्थों को समझाने व लिखने की कला द्वारा डॉ. भारिल्लजी ने जैनाजैन समाज में आज अपना एक विशेष स्थान
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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