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[ आप कुछ भी कहो
फिर भी कथा - साहित्य की अजेय शक्ति से गहराई से परिचित होने के कारण कथा - साहित्य सृजन सम्बन्धी विकल्प निरन्तर बना ही रहा । कथा - साहित्य के दो रूप हैं - उपन्यास और कहानी ।
यद्यपि कहानी की अपेक्षा उपन्यास का आकार-प्रकार विस्तृत होने के कारण अपनी बात प्रस्तुत करने के लिए उसमें अधिक अवकाश रहता है; तथापि व्यस्तता के इस युग में लोगों को इतना अवकाश कहाँ है, जो लम्बेलम्बे उपन्यासों को पढ़ सकें। आज तो लम्बी कहानियों की अपेक्षा भी लघुकथायें अधिक पढ़ी जाती हैं।
समाज के इस रुझान एवं समयाभाव ने मुझे कहानियों की ओर अभिमुख किया ।
सत्साहित्य का निर्माण परमसत्य के उद्घाटन के लिए किया जानेवाला महान् कार्य है; अतः इसका पठन-पाठन भी परमसत्य की उपलब्धि के लिए गम्भीरता से किया जाना चाहिए; पर आज इसे मनोरंजन की वस्तु बना लिया गया है। इसप्रकार का दुरुपयोग कथा - साहित्य में सर्वाधिक हुआ है। साहित्य की सर्वाधिक प्रभावशाली एवं शक्तिसम्पन्न यह विधा आज लोगों का मनोरंजन करने मात्र में उलझकर रह गई है - इससे बड़ा दुर्भाग्य साहित्य व समाज का और क्या हो सकता है ?
साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है, पर यह नहीं भूलना चाहिए की साहित्य मात्र दर्पण नहीं; दीपक भी है, मार्गदर्शक भी है, प्रेरक भी है । जो साहित्य प्रकाश न बिखेरे, मार्गदर्शन न करे, सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा न दे; मात्र वर्तमान समाज का कुत्सित चित्र प्रस्तुत करे या मनोरंजन तक सीमित रहे, वह साहित्य साहित्य नहीं, साहित्य के नाम पर कलंक है।
जिसप्रकार अणुशक्ति का सदुपयोग भी हो सकता है और दुरुपयोग भी; उसके सदुपयोग से यदि हम समृद्धि के शिखर पर पहुँच सकते हैं तो दुरुपयोग से सर्वविनाश भी सम्भव है ।