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युद्ध करते रहते हैं। मम्मीजी भी जरा समझदार थीं, आजकल के जमाने की थीं, सो उन्होंने बात को काटते हुय कहा-'नहीं......नहीं . ..... | अर्थनीति के कारण नहीं, युद्ध करना तो उनकी राजनीति है।'-पिताजी कहते हैं-'तुम कुछ नहीं समझतीं। मैं देश-दुनिया को जानता हूँ, अर्थनीति के कारण ही युद्ध होत हैं।' मम्मीजी कहती हैं-'मैं सब समझती हूँ| य लोग राजनीति के कारण ही आपस में लड़ते हैं। और कहा-सुनी के साथ जब बात बढ़ने लगी तो बेट ने हाथ जाड़े और कहा कि मुझे मालूम हो गया कि युद्ध क्यों होत हैं | वहाँ जिस कारण से होते होंगे सो होते होंगे, लेकिन यहाँ मुझे यह अच्छे से समझ में आ गया कि युद्ध क्यों हाते हैं। साफ-साफ दिख रहा है, कि जरा मैं सही, तू गलत; जरा मेरा सही, तेरा गलत और ऐसा करते-करते युद्ध की नौबत आ जाती है। सारा वातावरण तहस-नहस हो जाता है। स्वर्ग-जैसा सुन्दर घर भी क्षण भर में क्रोध के कारण नरक में बदल जाता है । जिन्दगी के महल में भी जरा तालमेल नहीं बैठाया गया तो क्रोध के आवश में आ करक खण्डहर में बदला जा सकता है। यह हमारी कषाय का परिणाम है। __ क्रोध करने से सदा अहित ही होता है, यह सभी लोग जानते हैं। कई लोग कहते भी हैं कि मैं क्रोध करना नहीं चाहता, फिर भी जरा-जरा-सी बात में क्रोध आ जाता है, ऐसा क्यों? एक बहुत अच्छे विचारक ने लिखा है कि क्रोध अज्ञानता से शुरू होता है और पश्चात्ताप पर जा करके खत्म होता है। यह सबके जीवन का अनुभव है कि क्रोध की शुरूआत अज्ञानता स, अविवेकपने से होती है और समापन पश्चात्ताप में ही होता है | अंत में वह स्वयं दुःखी होता है, उसकी वेदना उसे स्वयं होती है। एक बार एक राजा जंगल में शिकार करने गया । सुबह से बड़ा
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