________________
परेशान रहा | उसे कुछ नहीं मिला | थक करक वह एक वटवृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। उसे बड़ जोरों से प्यास लगी। प्यास के कारण उसका कंठ सूख रहा था | उसने वृक्ष की खोह में से आती हुई पानी की धार को देखा | उठकर उसने चार-पाँच पत्ते तोड़ और दोना तैयार कर लिया। पानी की धार में दोना का लगा करके वह पानी को बूंद-बूंद इकट्ठा करने लगा। धीरे-धीर पानी दोना में भर गया। जैस ही राजा पानी पीने को हुआ, पता नहीं कहाँ से एक तोता उड़कर आया और उसने पंख मारकर दोना जमीन पर गिरा दिया | सारा पानी फैल गया। राजा को गुस्सा आ गई, 'मैं इतना परेशान, पानी का इंतजाम नहीं; जैसे-तैसे पानी मिला तो इस तोते ने उस गिरा दिया। फिर उसने दोने को उठाया, पानी इकट्ठा करना शुरू कर दिया ।' धीरे-धीरे पानी फिर इकट्ठा हुआ । अबकी बार जैसे ही राजा बड़ी पिपासा के साथ पानी पीने को हुआ, कि तोता उड़कर आया, उसने फिर पंख मारा और दोना गिरा दिया | अबकी बार राजा का मन क्षुब्ध हो गया-'यह ताता तो मेरे पीछे ही पड़ गया, क्या बात है? क्या यह आज पानी नहीं पीने देगा?' राजा ने साचा कि ताता फिर आयेगा पानी गिराने, जरा सावधानी रखना चाहिये और फिर दोना उठाकर उसने पानी इकट्ठा किया। तीसरी बार जैसे ही पानी पीने को राजा हुआ कि तोता पहले से ही देख रहा था कि राजा दोना उठा रहा है। यहाँ राजा का दोने का अपने ओंठों की तरफ ले जाना हुआ कि तोता बड़ी तेजी के साथ आया, पंख फड़फड़ाये और दोने को गिराकर आगे बढ़ गया। राजा को क्रोध आ गया । ये ताता तो मरे प्राणां ही क पीछे पड़ा हुआ है। मेरा कंठ प्यास से सूखा जा रहा है और ये बार-बार पानी का गिरा रहा है | जरूर काई-न-कोई बदला ले रहा है। क्रोध में विवेक समाप्त हो जाता है। 'अब की बार
85)