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धार्मिक पर्वों में बूचड़खाने बंद रहेंगे |
यह है क्षमा की महिमा, सारा वातावरण पवित्र हो गया, सभी भाई आपस में गले मिले, बड़ी धूम-धाम से रथ यात्रा निकली और रास्ते में जितनी मस्जिदें पड़ीं वहाँ जैन बन्धुओं का स्वागत सत्कार किया गया । रथोत्सव में मुस्लिम भाइयों का उत्साह देखते ही बनता था । सबने अपनी दुकानों के सामने यथा योग्य स्वागत किया । क्षमा की क्रोध पर विजय हुई, क्योंकि क्रोध में इतनी शक्ति कहाँ जो क्षमा के आगे टिक सके । क्षमा वह नौका है जिस पर बैठकर क्रोध के अथाह सागर को पार किया जा सकता है ।
क्षमा एक पवित्र धर्म है, दशलक्षण पूजन में उत्तम क्षमा का वर्णन करते हुये द्यानतराय जी ने कहा है
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गाली सुन मन खेद न आनौ, गुन को औगुन कहै अयानो । कहि है अयानो वस्तु छीने, बाँध-मार बहूविधि करै । घरतें निकारै तन विदारै, बैर जो न तहाँ धरै ।। निमित्तों की प्रतिकूलता में भी जो शांत रह सके वह क्षमाधारी है । गाली सुनकर भी जिसके हृदय में खेद तक उत्पन्न न हो तब क्षमा है । किन्ही बाह्य कारणों से क्रोध व्यक्त भी न करे, पर मन में खेद - खिन्न हो जावे तो भी क्षमा कहाँ रही ? जैसे मालिक ने मुनीम को डाँटा - फटकारा तो नौकरी छूट जाने के भय से मुनीम क्रोध को प्रकट न करे, पर मन में खेद - खिन्न हो गया तो वह क्षमा नहीं कहला सकती । इसलिये तो लिखा है
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गाली सुन मन खेद न आनौ ।
जो गाली सुनकर चाँटा मारे, वह काया की विकृति वाला है । जो गाली सुनकर गाली देवे, वह वचन की विकृति वाला है । जो गाली
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