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पहल आऊँगा। पानीपत में इस समाचार से जैन समाज में प्रसन्नता व्याप्त हा गई और सभी रथोत्सव की तैयारी में लग गये | ठीक समय पर सेठ जी पानीपत पहुँच | सभी मुस्लिम भाइयों को बुलाया। जैसे ही मुस्लिम भाइयों का पता चला, वे विचार करने लगे जाना तो पड़ेगा ही, सरकार का आदमी है, चलो चलते हैं पर रथ नहीं निकलने देगें, चाहे कुछ भी हो जाये | सभी बड़े क्रोधित और लड़ने पर उतारू थे, अतः कुछ कसाईयों का साथ ल, जो खून से लथपथ थे, बड़ अहंकार के साथ सेठ जी से मिलने गये ।
सेठ जी तो पहले से ही इंतजार कर रहे थे, लेकिन सामने जो दृश्य देखा तो सारी स्थिति भांपली कि अब क्या हो सकता है। सठ जी ने भगवान का स्मरण किया । और दौड़ पड़े मुस्लिम भाइयों की ओर जो सबसे ज्यादा वीभत्स खून से लथपथ थे, उन्हीं को बाहुओं से लगा लिया | सेठ जी की राजसी पोशाक गंदी हो गई, मुस्लिम भाई सकपका गये | पारा नीचे उतर गया और सेठ जी को रोकने लगे कि आप क्या कर रहे हैं, हम तो आपस ही मिलने आ रहे थे और कुछ तो सेठ जी के चरणों में गिर गये |
मुस्लिम भाइयों का मुखिया बोला आपने व्यर्थ ही कष्ट किया, आप आज्ञा करते, हम हाजिर हो जाते, आपके वस्त्र भी गंदे हो गये । बड़ी मधुर वाणी में सेठ जी बाले-वस्त्र तो धुल जाएँगे पर भाई कहाँ मिलते हैं। इतना सुनते ही मुखिया चरणों में गिर पड़ा, सठ जी आज्ञा करो। सेठ जी बोले - आज्ञा नहीं मैं तो आपसे मिलने आया था, सो मिल लिया । पर यह जैन भाइयों का रथोत्सव का समय है, यदि आप प्रसन्न हैं तो रथ निकाला जाए | तब मुस्लिम बन्धु बोले सेठ जी रथ निकलेगा और जरूर निकलेगा, रथ में घोड़े, बैल नहीं, हम जुतेंगे, हम स्वयं खीचेंगे और उस दिन ही नहीं जैनों के समस्त
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