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बात या काम पसंद नहीं आता और वह बात बार-बार हमारे सामने आती है तो हम झल्ला पड़ते हैं, बार-बार की झल्लाहट चिड़चिड़ाहट में बदल जाती है | झल्लाहट और चिड़चिड़ाहट असफल क्रोध के परिणाम हैं। ये सभी विकार क्रोध के ही छोटे-बड़ रूप हैं। सभी मानसिक शान्ति को भंग करने वाले हैं, हमें इन्हें जीतना चाहिये | पर कैसे? पं. टोडरमल जी ने लिखा है -
अज्ञान के कारण जब तक हमें परपदार्थ इष्ट, अनिष्ट प्रतिभासित होते रहेंगे तब तक क्रोधादि की उत्पत्ति होती ही रहेगी, किन्तु जब तत्त्वाभ्यास के बल से पर-पदार्थों में से इष्ट, अनिष्ट बुद्धि समाप्त होगी तब स्वभावतः क्रोधादि की उत्पत्ति नहीं होगी। __ अपने अच्छे बुरे और सुख-दुःख का कारण दूसरों को मानना ही क्रोधादि की उत्पत्ति का मूल कारण है। जब हम अपने सुख-दुःख का कारण अपने में खोजेंगे, उनका उत्तरदायी अपने को स्वीकारेंगे ता फिर हमें क्रोध नहीं आयेगा।
क्षमा आत्मा का पवित्र गुण है | क्षमा के माध्यम से प्रम भाव से हम विरोधी को भी अपना बना सकते हैं। क्षमा से हम क्रूर-स-क्रूर व्यक्ति का भी जीत सकते हैं।
एक बार मुस्लिम बहुल पानीपत में जैनों का रथोत्सव बंद कर दिया गया। जैन बंधुओं की संख्या कम थी, अंग्रेजों का शासन था लेकिन सौभाग्य से उस समय दिल्ली में सठ सुगनचन्द्र जी थे, जो काफी प्रभावशाली थे | पानीपत का एक प्रतिनिधि मंडल रथोत्सव के सिलसिले में उनसे मिलने दिल्ली गया। सेठ जी को बड़ी पीड़ा हुई, जिनेन्द्र भगवान का रथोत्सव रुका हुआ है। सारी घटना सुनकर सेठ जी बोले-जाओ मित्रा रथोत्सव की तैयारी करो, मैं ठीक दो दिन