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पंडित जी बोले - तुम्हारी चार-आना जिन्दगी ता व्यर्थ हो गई। मल्लाह कुछ नहीं बोला । फिर थोड़ी दूर चलकर पंडितजी ने पूछाभाई व्याकरण शास्त्र तो जानत होगे। मल्लाह ने कहा - पण्डित जी यह क्या होता है? यह तो मैं नहीं जानता। पण्डित जी बोले – भाई। तुम्हारी आठ-आना जिन्दगी बेकार हो गई | तुम व्याकरण भी नहीं जानते | अच्छा देखो ज्योतिष शास्त्र तो कुछ जानते होगे । अब बेचारा मल्लाह क्या कहे | उसने कहा – पंण्डितजी मैं पढ़ा लिखा बिल्कुल भी नहीं हूँ | ज्योतिष वगैरह मैं नहीं जानता । पण्डितजी बोले- भइया! तब तो तुम्हारी बारह आना जिन्दगी बेकार चली गई।
नाव आगे बढ़ते-बढ़ते अचानक डाँवाडाल होने लगी। मल्लाह ने कहा- पण्डितजी लगता है नदी में तूफान आ गया है | पण्डितजी घबराए | मल्लाह ने कहा - पण्डितजी आप तैरना ता जानते होंगे | अब पण्डितजी क्या कहें? बोले - भाई मैं तैरना तो नहीं जानता। मल्लाह ने धीरे से कहा – तब तो पण्डितजी आपकी सोलह-आना जिन्दगी बेकार हो गई।
हमें यदि संसार-सागर से पार होने की विद्या नहीं आती तो बताइए हमारे किताबी ज्ञान की क्या उपयोगिता है। 'जेण तत्त्वं विवुज्जेज्ज' यानी जिसके माध्यम से अपने आत्म-तत्त्व का बोध हो, वही वास्तविक ज्ञान है। स्वाध्याय करने से अपनी कमी मालूम पड़ जाती है, जिससे उसके शोधन करने में आसानी होती है। अकेले ग्रंथ पढ़न मात्र से स्वाध्याय नहीं होता | ग्रन्थ में कही गई आत्म-हितकारी बातों को अपने जीवन में धारण करना ही सच्चा स्वाध्याय है।
ज्ञानार्णव ग्रंथ में आचार्य शुभचन्द्र महाराज ने सम्यग्ज्ञान का वर्णन करते हुए लिखा है :
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