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आत्मज्ञान की कसौटी है । वही ज्ञान सच्चा माना जाता है, जो स्व व पर के आत्मकल्याण में सहायक बने ।
एक साधु जी ज्ञान प्राप्त करने एकान्त गुफा में निरन्तर शास्त्र अध्ययन करते रहते थे । अध्ययन करते-करते एक वर्ष बीत गया पर शान्ति व आनन्द नहीं मिला। सोचा, वापिस लौट जाऊँ । देखा कि एक मकड़ी जाल बुनते-बुनते बार-बार नीचे गिर जाती है, परन्तु फिर से बुनने लगती है। बड़ी प्रेरणा मिली । सोचा एक वर्ष और अध्ययन कर लूँ। एक वर्ष तक अध्ययन चला पर लाभ नहीं मिला । बाबाजी लौटने का हुए तो देखा चिड़िया घौंसला बना रही है, पर तिनक सब हवा में बिखर जाते हैं, वह फिर मेहनत करके सारे तिनके जमाने लगती है। प्रेरणा मिली, सो एक वर्ष और अध्ययन करने गुफा में ही रुके रहे, पर आनन्द नहीं मिला। अब निराश होकर लौटने लगे, तो देखा रास्ते में एक गाय का बछड़ा पीड़ा से तड़प रहा है। पास जाकर पता किया तो मालूम पड़ा पैर में घाव हो जाने से कीड़े पड़ गए हैं। बाबाजी का मन दया से भर आया । बछड़े की सेवा में जुट गए। घाव साफ किया, मरहम लगायी, पट्टी बांधी। बछड़े को राहत मिली। उसने आँखें खोलकर बाबाजी की ओर कृतज्ञता से देखा | बाबाजी को बड़ी शान्ति मिली, मन प्रसन्न हो गया | प्रेमभाव से की गई सेवा सफल हो गई। जो किताबी ज्ञान हासिल करके नहीं मिला, वह प्राणीमात्र के प्रति प्रेमभाव रखने, उसका हित चाहने से मिल गया । ज्ञान की सार्थकता इसी में है कि वह स्व - पर कल्याण में निमित्त बने ।
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यह स्व-पर प्रकाशक, सर्वहितकारी आत्मज्ञान हमारे पास है । वह हमारी निजी सम्पदा है। उसे कहीं बारह से लाना नहीं है । उसे अपने में ही प्राप्त करना है। शास्त्र के अभ्यास से, गुरुजनों के
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