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है, अतः ज्ञान की आराधना भिन्न बतलाई है ।
तास भेद दो हैं परोक्ष परतछि तिन माहीं, मति श्रुत दोय परोक्ष अक्ष मनते उपजाहीं । अवधिज्ञान मनपर्जय दो हैं देश प्रतच्छा, द्रव्य क्षेत्र परिमाण लिये जानै जिय स्वच्छा || सकल द्रव्य के गुन अनन्त परजाय अनन्ता, जानै एकै काल प्रकट केवलि भगवन्ता । । सम्यग्दर्शन सहित सम्यग्ज्ञान होता है, उसके दो भेद हैं, एक पराक्ष, दूसरा प्रत्यक्ष |
मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ये दोनों इन्द्रियों तथा मन की सहायता से जानते हैं इसलिये परोक्ष ज्ञान हैं । अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान ये दोनों एकदेश प्रत्यक्ष हैं । उनके द्वारा जीव मर्यादित द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव का इन्द्रिय और मन के अवलम्बन बिना प्रत्यक्ष- स्पष्ट जानता है । केवलज्ञान सम्पूर्ण प्रत्यक्ष है, केवली भगवन्त समस्त द्रव्यों के अनन्त गुणों को तथा अनन्त पर्यायों को एक साथ प्रत्यक्ष जानते हैं । जानने में कोई द्रव्य - क्षेत्र - काल - भाव की मर्यादा नहीं है ।
तत्त्वार्थ सूत्र जी में आचार्य उमास्वामी महाराज ने लिखा है"मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलानि ज्ञानम् ।।"
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पाँच ज्ञान हैं ।
(1) मतिज्ञान
पाँचो इन्द्रियों और मन की सहायता से जो ज्ञान होता है उसे मतिज्ञान कहते हैं । यह 4 प्रकार का होता है।
(I) अवग्रह (II) ईहा (III) अवाय और (IV) धारणा
(I)
अवग्रह विषय विषयी के सन्निपात के अनन्तर जो आद्य
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