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मैं अमुक पदार्थ से आनन्द पाता हूँ और इस भ्रम के कारण इसे बहुत अधीन होना पड़ता है। जैसे कि बालू की रेत में से तेल निकालने की बात सोचने वाला विवेकी नहीं है, ऐसे ही पर-पदार्थों में रमकर आनन्द की आशा रखने वाला भी विवेकी नहीं है। शुद्ध आनन्द प्राप्त करने के लिये यह प्रथम ही आवश्यक है कि बाह्य पदार्थों को बाह्य जानकर, अहित, भिन्न, असार जानकर उन सबका विकल्प तोड़ दें ।
भैया! अपनी आत्मा की दया करें । आशा से, कषायों से, मोह जालों से आत्मा को परेशान करने में बरबादी है और पापकर्मों का बन्ध होता है । यहाँ के मरे न जाने कहाँ गये? फिर यहाँ के लोग क्या बात पूछेंगे? कुछ वर्षों के जीवन में मोह ममता करके अपना भविष्य बिगाड़ लेना यह बुद्धिमानी नहीं है । आज कितना सुयोग हम आपने पाया है । स्थावरों की योनि से निकलकर कीट-पतंगों की योनि से निकलकर आज मनुष्य भव में आये हैं । कल्याण का अवसर तो इस मनुष्य पर्याय से ही मिलेगा। जब तक वृद्ध नहीं हुये, कोई रोग नहीं है, तब तक ज्ञानार्जन कर समय का सदुपयोग करें। यह ही एक लाभदायक बात होगी, किन्तु इस दुर्लभ, मनुष्य भवको यदि विषय-भोगों में, व्यर्थ के मोह में ही गँवा दिया तो कुछ भी लाभ नहीं मिलेगा ।
जैसे गन्ना होता है, उसके बीच में पोरों में कीड़ा लग गया हो तो वह भीतर लाल-लाल हो जाता है, जो कि खाया नहीं जा सकता । उसही गन्ने को कोई मूर्ख चूसकर खराब कर तो उसने अपना मुँह भी खराब किया और गन्ना भी खराब किया। कोई विवेकी गन्ने के पोर काटकर खेत में बो दे तो उससे अनेकों गन्ने पैदा होंगे । गन्ने की जड़ तो खायी नहीं जाती, बड़ी कठोर होती है और गन्ने का ऊपरी भाग नीरस होता है, वह भी चूसने में नहीं आता । केवल गन्ने का बीच का हिस्सा चूस सकते हैं और उसमें भी लग
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