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दर्शन कर सकता है।
सच्ची प्रभु भक्ति धनंजय कवि ने की थी। जब वे पूजा कर रहे थे, उसी समय घर पर उनके लड़के को साँप ने डस लिया | तो उनकी पत्नी घबड़ाई हुई मंदिर आयी और समाचार दिया कि अपने लड़के का साँप ने काट लिया, जल्दी चलिये | उस समय धनंजय सेठ पूजा कर रहे थे, सो अनसुनी बात कर दी। अब देखिये पूजन को उन्होंने कितना अधिक महत्त्व दिया | अनसुनी कर देने पर उनकी पत्नी बहुत उदास होकर घर आयी, उसे कुछ गुस्सा भी आया कि एसी कैसी पूजा कि घर में ता बच्चे को साँप ने डस लिया और वह पूजा नहीं छोड़ते।
देखिये उस समय अनेक लोगों के मन में भी यह बात आयी होगी कि शायद सठ जी के दिमाग में काई फितूर आ गया है, अरे पूजा छोड़कर बच्चे की सम्हाल करते, पूजा तो दूसरे दिन भी हो सकती थी, मगर उन धनंजय सेठ की धुन देखिय, उनका अटल विश्वास देखिये | आखिर सेठानी को गुस्सा आया तो उस अधमरे, लड़के का उठाकर मंदिर में ले आयी और वहीं रख दिया तथा बोली-लो सेठ जी अब तुम जानो । अब भी वह प्रभु भक्ति में लीन रहे | वह जानते थे कि मणि, मंत्र, औषधि, सब कुछ प्रभु भक्ति है, उस समय उन्होंने विषापहार स्त्रोत की रचना की। वह बहुत बड़े विद्वान थे। उनका रचा हुआ एक काव्य है, दुसंधान काव्य | उसमें श्लोक तो एक है, पर उसी श्लोक में पांडवों की कथा भी निकलती है और श्रीराम की भी, इस ढंग से उसम शब्द रचना की है, वह वहाँ विषापहार स्त्रोत रचत गये और उसी बीच में जहाँ भक्ति में बोलते
विषापहारं मणिमौषधानि मंत्र समुदिदश्य रसायनं च |
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