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पहले लड़के को सब हिसाब समझा दो | युवक ने कहा-जब छोड़ ही दिया, तो अब क्या समझायें? खेलता हुआ लड़का भी रास्ते में मिला
और दोनों ने कहा कि भैया! चलो वन को हम दोनों तो सब छोड़कर चल दिये | लड़का शीघ्र तैयार हो गया । वृद्ध ने कहा-अरे माँ से तो कह आ। तब लड़का बोला-अरे! जब जाना ही है, तो क्या कहना? और चल दिया वन को, उनके ही साथ में | भैया! जिसने संसार की माया को देखा ही नहीं, वह जल्दी विरक्त हो सकता है। व बालक बड़े सौभाग्यशाली हैं, जो फँसन के पहिले ही विरक्त हो जाते हैं।
'स्व' का जहाँ अध्ययन हो, वही स्वाध्याय है। सबकी तो हमने व्यवस्था की, पर अपनी आत्मा की हमने कोई व्यवस्था न की | "पर घर गये बहुत दिन बीते, नाम अनेक धराय ।' हम पर क (पदार्थों के) घर तो गये लेकिन अपने (आत्मा के) घर नहीं गये | अनेक गतियों में हमने अनेक नामों को धारण किया। इस आत्मा ने नारकी, पुरुष, देव, पशु आदि अनेक नामों को पाया है।
एक आदमी विदेश से घर आया । उसे जैसे जवाहरगंज, जबलपुर में आना है | जब वह जहाँ से चला, लोगों ने पूछा कि बाबूजी! कहाँ जाओगे? ''भारत'' बाबूजी ने उत्तर दिया। जब वह युवक भारत में आया और उससे गन्तव्य स्थान पूछा गया, तो उसने मध्यप्रदेश अपना गंतव्य स्थान बताया। जब मध्यप्रांत में आया, तब उसका स्थान और भी सीमित हो गया, जबलपुर हो गया | जब जबलपुर आ गया, तब रिक्शेवाले के पूछने पर उसने गन्तव्य स्थान जवाहरगंज बताया और फिर अपने घर का नम्बर बताते हुय युवक ने रिक्शेवाले को रुकने के लिए कहा। अपने घर पर आकर, युवक एक कमरे में आराम से बैठ गया। कहने का अर्थ यह कि ज्यों-ज्यों हम पर को
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