________________
जंगली जानवरों की गर्जना सुनाई देती थी । ऐस भयानक जंगल में अनंगसरा ने तीन हजार वर्ष तक अपना जीवन पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ बिताया था। वहाँ उसके शील के प्रभाव से जंगली जानवरों ने उसको अपना भोजन नहीं बनाया । वे उसके साथ भाई बहिन, मित्र के समान क्रीड़ा करते थे । वहाँ से मरण कर वह भगवान मुनिसुव्रत भगवान के शासन काल में विशल्या नाम की राजकुमारी हुई । उसके स्पर्श किये जल को लगाने से रोग दूर हो जाते थे । उसके स्पर्श किये जल से रावण के बाणों से मूर्छित लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर हो गई श्री । आचार्य महाराज कहते हैं कि विशल्या का विवाह जब तक नहीं हुआ था तब तक उसमें जो रोगनाशक शक्ति थी, वह लक्ष्मण के साथ विवाह होने के बाद नहीं रही थी । इसी प्रकार शीलवती अंजना के शील के प्रभाव से मारने के लिये द्वार पर पहुँचा हुआ अष्टापद भी अंजना के तेजस्वी चेहरे को देखकर बिना मारे ही लौट गया ।
गृहस्थी में रहकर स्वदार सन्तोष व्रत पालन करने वालों के शील का भी इतना प्रभाव देखा जाता है, तब अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन करने का तो कहना ही क्या है ।
राजपुत्र शिवकुमार पाँच सौ स्त्रियों के बीच रहते हुये भी असिधाराव्रत (पूर्ण ब्रह्मचर्य ) का पालन किया था और अंत में दिगम्बर मुनि होकर समाधिमरण करके छटवें स्वर्ग में विद्युन्माली नाम का महान देव हुआ और वहाँ से आकर अर्हदास सेठ के यहाँ जम्बूकुमार नामक पुत्र हुआ । श्री सुधर्माचार्य से उपदेश सुनकर उन्हें वैराग्य हो गया किन्तु फिर भी उनके माता पिता ने पद्मश्री, कनक श्री, विनय श्री, और रूप श्री नामक सुन्दर कन्याओं के साथ उनका विवाह करवा दिया। सभी ने तथा चोरी करने आये विद्युतचर चोर ने भी उन्हें घर
671