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बांधा है। परन्तु मैं दृढ़ता पूर्वक अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करुगाँ । कुमार का संसार की माया किन्चित भी नहीं रुचती थी । वह स्त्रियों को सदैव जिन धर्म का उपदेश देता था । संसार की असारता, मनुष्य भव की दुर्लभता, जीवन की चंचलता आदि के बारे में समझाता था । कुमार के उपदेश से स्त्रियों का मन भी शान्त हुआ और उन्होंने भी ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया । निश्चल चित, धीर-वीर उस कुमार ने घर में रहकर चौंसठ हजार वर्ष तक तप ( उपवास आदि) करते हुये व्यतीत किये और अन्त में णमोकार मंत्र का स्मरण करते हुये समाधिमरण पूर्वक देह को त्याग कर छठवें स्वर्ग में देव हुआ । हमें गृहस्थ वैरागी राजकुमार के आदर्श जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये, और जिन्होंने तीन हजार कन्याओं के बीच, चौंसठ हजार वर्ष तक रहकर भी अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन किया । ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता हैं। अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिये सभी को यथाशक्ति ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिये ।
शील का पालन करने वालो में ऐसी शक्तियाँ प्रकट हो जाती हैं जो भव-भवान्तरों भी साथ देती हैं। देखो ! विशल्या में ऐसी शक्ति कहाँ से आयी जिसके प्रभाव से उसके शरीरका स्पर्श हुआ जल बड़े-बड़े असाध्य रोगों को नष्ट करने में समर्थ था । यह उसके पूर्व भव में पाले गये शील का ही प्रभाव था । वह पूर्व भव में त्रिभुवानन्द चक्रवर्ती की अनंगसरा नाम की पुत्री थी । उसके रूप से मोहित होकर एक विद्याधर राजा उसका हरण कर ले गया । चक्रवर्ती के सेवकों से युद्ध करते समय उसका विमान चूर-चूर हो गया । तब उसने व्याकुल होकर उस कन्या को आकाश से गिरा दिया, जिससे वह पर्ण लघ्वी नामक विद्या के सहारे अटवी मे जा गिरी, जहाँ सामान्य मनुष्य का तो प्रवेश ही असंभव था, तथा जहाँ निरन्तर
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