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में रहने के लिये बहुत समझाया पर उन पर किसी का भी रंचमात्र प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंन प्रातःकाल ही श्री सुधर्माचार्य के पास जाकर मुनि दीक्षा ले ली | चारों बहूओं ने तथा 500 साथियों सहित विद्युतचर चोर ने भी जैनश्वरी दीक्षा ले ली। जिस दिन सुधर्माचार्य गुरु मुक्ति को पधारे उसी दिन जम्बूस्वामी को केवलज्ञान प्रगट हो गया, इसलिये जम्बूस्वामी अनुबद्ध केवली कहलाये | जम्बूस्वामी के मोक्ष जाने पर उस दिन से कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुये |
धन्य हैं ये जम्बूस्वामी। जिन्होंने पूर्वभव में घर में पत्नियों के बीच रहते हुये भी पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करके, इस भव में तत्काल विवाही हुई नवीन सुन्दर पत्नियों में सर्वथा अनासक्त होत हुये, अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके मुक्ति को प्राप्त किया |
विशल्या के प्रभाव से लक्ष्मण को लगी हुई 'अमोघ शक्ति' नाम की विद्या का प्रभाव खत्म हो गया था, किन्तु विवाहित होने के बाद उसमें वह विशेषता नहीं रही थी। इस प्रकार जो पूर्ण ब्रह्मचर्य अणुव्रत का पालन करते है, वे भी देवों द्वारा पूजा को प्राप्त होते हैं |
सभी को ब्रह्मचर्य व्रत लेकर उसकी नौ बाढ़ों से सुरक्षा करना चाहिये | ब्रह्मचारी को - 1. न तो स्त्रियों के आसन पर बैठना चाहिये । 2. न उसकी शैय्या पर सोना चाहिये । 3. न स्त्रियों के साथ एकान्त में मिलना चाहिये । 4. न उनके साथ मीठा रागजनक वार्तालाप करना चाहिए | 5. न उनके अंग उपांगों को देखना चाहिये | 6. गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिये | अपना रहन सहन, खानपान सात्विक, सादा रखना चाहिये |
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