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आर्यिका अपनी सुरक्षा हेतु एक गुफा में प्रवेश कर गई, गुफा में अंधकार होने के कारण वहाँ वह गुफा को शून्य देख अपनी साड़ी निचोड़ने का कार्य करने लगी, उसी समय बिजली चमकी। बिजली के प्रकाश में गुफा में स्थित सात्यकी मुनिराज की दृष्टि उस पर पड़ी । आर्यिका को देखत ही मुनिराज पूरी तरह विचलित और भ्रष्ट हो गये। ___ बाद में मुनिराज तो आलोचना, निन्दा-गर्हा-प्रायश्चित्त करके धर्म में स्थिर हो गय, परन्तु आर्यिका गर्भवती हा गई | जब शान्ता नाम की प्रधान आर्यिका को पता चला तो उसने उसे उसकी बहिन चेलना को सौंप दिया। वहाँ नौ माह बाद उनक पुत्र उत्पन्न हुआ | उसका नाम स्वयंभू रखा गया जो अन्तिम रुद्र (शंकर जी) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ज्यष्ठा अपने प्रसव का काल पूरा होने पर निःशल्य होकर अपनी गणनी आर्यिका क पास जाकर आलोचना कर प्रायश्चित्त ग्रहण कर पूनः संयम का परिपालन करने लगी।
देखा! तीन गुप्ति का परिपालन करने वाले मुनिराज जो पर्वत के समान निश्चल, समुद्र के समान गम्भीर तथा स्थिर चित्त थे, एसे महाव्रतधारी सात्यकी मुनिराज भी बिजली के क्षणिक प्रकाश में आर्यिका को देखकर तथा क्षणभर क लिये एकान्त में सम्पर्क प्राप्त कर अपने संयम रूपी रत्न शिखर से च्युत हा गये तो साधारण व्यक्ति की क्या बात है | अतः किसी भी महिला-पुरुष को किसी अन्य पुरुष-महिला के साथ एकान्त में वार्तालाप, उठना, बैठना आदि नहीं करना चाहिये।
पाँचवा कारण-स्त्रियों के अंगोपांग देखने से-आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्त्वार्थ सूत्र जी के सातवें अध्याय के सातवें सूत्र में
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