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ब्रह्मचर्य की रक्षा और निर्मलता के लिये स्त्री के अंगोपांग देखने का निषेध किया है (तन्मनोहरां गनिरीक्षण), क्योंकि स्त्री के अंगोपांग को क्षणमात्र भी देखने से मन में विकार उत्पन्न हो जाता है ।
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अन्य शास्त्रों में एक कथा प्रचलित है
ब्रह्मा जी बड़े तपस्वी थे। उन्होंने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की थी । उससे इन्द्र का आसन कम्पायमान हुआ । इन्द्र ने ब्रह्मा जी को तपस्या से डिगाने के लिये तिलोत्तमा नाम की एक सुन्दर अप्सरा को भेजा । अप्सरा आकर ब्रह्मा जी के सामने नाचने लगी तथा बड़े ही मधुर स्वर में गाते हुये कौतुक करने लगी । लेकिन ब्रह्मा जी अपनी तपस्या से नहीं डिगे | बहुत समय तक घुंघरू की झंकार तथा मधुरगान को सुनकर ब्रह्मा जी ने अपनी आँखें थोड़ी-सीं खोलकर देख लिया। जैसे ही ब्रह्मा जी की दृष्टि अप्सरा पर पड़ी, वे उस पर मोहित हो गये । वे बार-बार उसे देखने के लिए आतुर हो गये । उनको आतुर देख अप्सरा ब्रह्माजी के दाहिनी ओर जाकर नृत्य करने लगी । अप्सरा को देखने की लालसा से ब्रह्माजी ने अपनी 1000 वर्ष की तपस्या के बल से दक्षिण में अपना मुँह बनाया और अप्सरा को देखने लगे । इस घटना को देखकर अप्सरा ब्रह्मा जी के पीछे एवं बायीं ओर जाकर नाचने लगी । ब्रह्मा जी ने अप्सरा को देखने के लिये अपनी 1000 वर्ष की तपस्या से पश्चिम एवं उत्तर में भी में अपना मुँह बना लिया और अप्सरा का अवलोकन करते हुये अपने नेत्रों को तृप्त करने लगे । ब्रह्माजी का अपने ऊपर आसक्त देखकर अप्सरा आकाश में नृत्य करने लगी । ब्रह्मा जी ने अप्सरा को देखने के लिये ऊपर भी मुँह बनाने की कोशिश की। लेकिन, तपस्या अल्प रह जाने के कारण, उनके मनुष्य का मुँह न बनकर गधे का मुँह बन गया। इस प्रकार ब्रह्माजी ने अप्सरा को देखने के लिये अपनी
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