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सभी को ब्रह्मचर्य व्रत अवश्य धारण करना चाहिये | यदि हम पूरी तरह इस व्रत का पालन नहीं कर पाते हों तो स्वदार-संतोष व्रत (ब्रह्मचर्याणुव्रत) ही यथेष्ट है | संयमित जीवन व्यतीत करना होगा। तभी सद् गृहस्थ बन सकेंगे | जो सद्गृहस्थ बनेगा, वही ज्ञानवान् तथा चारित्रवान् बन सकेगा। अपनी पत्नी क अलावा सभी को माता, बहिन के समान देखना | इस भी ब्रह्मचर्य अणुव्रत के अंतर्गत रखा गया है।
सेठ सुदर्शन, जिनका रूप कामदव के सदृश सुन्दर था, वे स्वदार-संतोष व्रत क धारक थे। उनके रूप पर आसक्त होकर रानी ने छल से धूर्त दासी के द्वारा उन्हें अपन महल में बुलवा लिया और उनको डिगाने क अनेकों प्रयास किये परन्त व अपने व्रत में अडिग रहे। जब समस्त प्रयास करने पर भी रानी सफल न हो सकी, ता उसने क्रोध में आकर अपने कपड़े फाड़ लिय और अपन ही हाथों से अपन अंगों को नोंच डाला तथा सेठ सुदर्शन पर असत्य आरोप लगाकर राजा को भड़काया कि दखो, आपको धिक्कार है, जो आपक रहते सेठ ने मेरी यह दशा की। राजा ने रानी की बातों में आकर सठ सुदर्शन को सूली पर चढ़ाने की सजा सुना दी। सेठ सुदर्शन को सूली पर चढ़ाया गया, तो उसक दृढ़ ब्रह्मचर्य अणुव्रत के प्रभाव से शूली भी सिंहासन बन गई। तब रहस्य खुलता है कि दोष इसका नहीं, दोष तो रानी का है | ये गृहस्थ होते हुए भी अपन आचरण में दृढ़ हैं। यही तो ब्रह्मचर्य धर्म के पालन में सच्ची निष्ठा है कि-'मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत् ।' यही वास्तव में वैराग्य है कि गृहस्थ परस्त्री को माता के समान मानता है और दूसरे के धन को कंकर-पत्थर की तरह अपने लिय हेय समझता है |
प्रत्येक गृहस्थ को ब्रह्मचर्य अणुव्रत तो अवश्य ही लेना चाहिये | व्रत कोई भी छोटा नहीं होता। आज सुदर्शन सठ का परस्त्री के
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