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गया कि यह दोनों अखंड ब्रह्मचर्य व्रत के धारी हैं। यह है अखंड ब्रह्मचर्य व्रत की महिमा ।
एक जमाना था जब व्यक्ति बचपन में ही ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर अपना कल्याण कर लेते थे | पर आज व्यक्ति वृद्ध हो गये हैं, शरीर सूख गया है, उनस यदि ब्रह्मचर्य व्रत लेने को कहा जाय तो कहते हैं अभी नहीं, हमस नहीं बनेगा |
एक बार एक मुनिराज ने 70 वर्ष के एक वृद्ध व्यक्ति से कहा कि आपका सारा जीवन भोगों में निकल चुका है, अब अंतिम समय आ गया है, ब्रह्मचर्य व्रत ले लो | उसने मना कर दिया, बोला-महाराज! अभी नहीं, कुछ दिन बाद देखा जायेगा। दूसरे दिन सुबह ही नहीं हो पायी कि उसकी मृत्यु हो गयी।
ब्रह्मचर्य व्रत के पालन के लिये वासना को दूर करना चाहिये । यदि हमने व्रत ले लिया, किन्तु अन्दर में वासना विद्यमान है, तो स्त्री-सम्बन्धी विकल्पों से पाप लगेगा। दो नाते जिसके जीवन में रह गये हैं, माँ के और बहिन क, उसके मन में कभी विकार नहीं आता।
एक बार एक पति-पत्नी विधान में सम्मिलित हुए | पंडित जी ने पूछा-धर्म पत्नी है यह आपकी? दानों ब्रह्मचारी थे, अतः बोले-धर्म पत्नी नहीं, बहिन है। जिसे पत्नी के रूप में स्वीकार किया था, गृहस्थ अवस्था में, उसे ही साधना पथ पर आरूढ़ होता देखकर बहिन क रूप में मान लिया | अब मात्र बहिन के रूप में सम्बन्ध रह गया। जिसने स्त्री मात्र का बहिन के रूप में देखा, वही वास्तव में ब्रह्मचारी है।
तीनों लोकों में सुख की अनुभूति कराने वाला एक मात्र ब्रह्मचर्य व्रत है | जो इस व्रत का पालन करता है, वह सुगति में ही जाता है। अतः
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